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१०९. जोहानिसबर्गको चिट्ठी

सत्याग्रह-कोष

भारतीय लोग प्राय: पूछते हैं कि भारतसे रुपयेकी जो बड़ी सहायता मिली है, उसकी व्यवस्था कैसी-क्या की जा रही है। प्रत्येक भारतीयको यह प्रश्न करनेका अधिकार है । इसलिए इसका स्पष्टीकरण भी किया जाना चाहिए। यह रुपया श्री गांधीके अधिकारमें है और केवल सत्याग्रहकी लड़ाईके लिए काममें लाया जायेगा। इसके लिए अनाक्रामक प्रतिरोध कोषके नामसे अलग खाता खोला गया है और उसमें से श्री गांधीके हस्ताक्षरोंसे रुपया निकलता है। इस रुपये में एक निश्चित रकम, अर्थात् रंगूनसे मिली सारी रकम और बम्बईसे मिली कुछ रकम, केवल गरीब सत्याग्रही कुटुम्बोंका निर्वाह करनेके लिए और गरीब सत्याग्रहियोंके निर्वाहमें सहायता देनेके लिए रख दी गई है। शेष रुपया सत्याग्रहकी लड़ाईको चलाने और जारी रखनेमें खर्च किया जा रहा है । अर्थात् यह रुपया ब्रिटिश भारतीय संघके दफ्तरका खर्च देनेमें, इंग्लैंडके दफ्तरका खर्च देनेमें, भारतमें होनेवाले खर्चको पूरा करनेमें और सत्याग्रहकी लड़ाईके सम्बन्धमें किये गये ऋणको चुकाने में काममें लाया गया है। इन सारे खर्चोंके सम्बन्धमें श्री काछलिया और अन्य सत्याग्रहियोंसे परामर्श किया जाता है और हिसाब प्रो० गोखलेको और साथ-साथ कोषके मन्त्री श्री पेटिटको भेजा जाता है। इस कोषको खर्च करनेके सम्बन्धमें प्रो० गोखले और श्री पेटिटके जो पत्र श्री गांधी के नाम आये हैं उनमें यह बात श्री गांधीकी अपनी मर्जीपर छोड़ी गई है। इन पत्रोंको अंग्रेजी विभागमें यथावश्यक प्रकाशित किया गया है।' इस कोषका कोई भी दूसरा उपयोग करनेके लिए दानी महानुभावोंकी स्वीकृति लेनी पड़ेगी ।

बॉक्सबर्गकी कहानी

सरकारने बॉक्सबर्गके भारतीयोंको अपने सिकंजे में कस लिया है। मैं चाहता हूँ कि वे लोग मजबूत रहे और उसमें से निकल आयें। कुछ नासमझ लोग उनको बहका रहे हैं। उनको मैं परामर्श देता हूँ कि उन्हें चुप रहना चाहिए। वे अच्छा न कर सकें तो बुरा भी न करें । उनको जेलमें ले जानेके बाद मजिस्ट्रेटने वापस बुलाया और आदेश दिया कि उनके जुर्मानोंकी वसूलीके लिए उनका माल जब्त कर लिया जाये। इसके फलस्वरूप श्री मोज़ेजका ३०० पौंडका घर और श्री मूनसामीका २५० पौंडका घर दो-दो पौंड जुर्मानेमें जब्त किये गये हैं। इसके बावजूद मुझे उम्मीद है कि बॉक्सवर्गके भारतीय जुर्माना हरगिज नहीं देंगे और माल जब्त हो जाने देंगे। किसी भी भारतीयको फुटकर मालकी बोली न लगानी चाहिए। घर बोली लगाकर ले लेना चाहिए। यह सुझाव दिया गया है कि इस सम्बन्धमें क्षति-पूर्ति समिति करे। यह सुझाव नासमझीसे दिया

१. गोखलेके १३-१-१९१० के पत्र और पेटिटके ५-१-१९१० के पत्रके केवल सम्बद्ध अंश ही छापे गये थे । देखिए इंडियन ओपिनियन, ५-३-१९१० । Gandhi Heritage Porta