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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया जा रहा है, वही कर्ज अदा करनेके लिए कौमने ट्रान्सवालमें खासतौरसे आम चन्दा शुरू किया था, परन्तु कौम उसको इकट्ठा नहीं कर सकी। जो खर्च हुआ है और होता है, उसका हिसाब माननीय प्रोफेसर गोखलेको भारत भेजा जाता है। कदाचित् आप यह नहीं जानते होंगे कि मेरी सारी कमाई फीनिक्समें लगाई जा चुकी है। मुझे यह देखकर दुःख होता है कि आपने मेरे साथ भेंटका जो विवरण प्रका- शित किया है उससे मेरे कथनका विपरीत अर्थ ही अधिक प्रकट होता है । आपको यह पत्र प्रकाशित करनेकी अनुमति है।

मोहनदास करमचन्द गांधीके सलाम

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-३-१९१०

१११. गिरमिटिया भारतीयोंपर श्री टैथम

गिरमिटिया मजदूरोंका लाना बन्द होना चाहिए, इस प्रश्नपर नेटालके स्वार्थी बागान-मालिकोंको छोड़कर अन्य लोगोंमें आश्चर्यजनक एकमत दिखाई देता है। इस प्रश्नपर हम श्री टैथमके भाषणके कुछ अंश दे रहे हैं। हमें श्री टैथमकी दलीलोंसे सरोकार नहीं है; उनमें से कुछ सदोष है। हम उनके इस विचारसे सहमत नहीं हैं कि स्पर्धात्मक उद्योगवाद राष्ट्रको महानतर बनाता है और गोरोंका “ सुसंस्कारी प्रभाव मानवके सुखकी वृद्धि करता है।" इस्लामके प्रचारके बारेमें उनके आक्षेप उनके पूर्ण अज्ञानको प्रकट करते हैं। परन्तु हम कह चुके हैं कि उनके इन विचारोंसे हमें कोई मतलब नहीं है। किन्तु हम उनकी इस बातसे हृदयसे सहमत हैं कि “इन (चाय और चीनीके) उद्योगोंका, न चलना बेहतर होगा बनिस्बत इसके कि वे एक इस तरहके श्रमकी सहायतासे चलाये जायें जिससे देश बरबाद हो जाये।" इसके अलावा हम श्री टैथमके इस कथनसे भी सहमत हैं कि “एशियाई श्रमके अभावमें इन उद्योगोंका कुछ भी बिगड़नेवाला नहीं है। " हमारी इच्छा थी कि श्री टैथम जरा ऊपर उठकर ऊँची भूमिकासे इस गिरमिटिया प्रथाकी निन्दा उसके गुणावगुण और आन्तरिक दोषोंके आधार- पर करते। खैर, जो हो, इसमें कोई शक नहीं कि गुलाम मजदूरोंको दक्षिण आफ्रिकामें लाना एक दिन बन्द होगा ही। और इसके साथ ही एशियाइयोंका यह सनातन प्रश्न भी अदृश्य हो जायेगा ।

१. यह उपलब्ध नहीं है । २. देखिए "पत्र: एम० पी० फैंसीको”, पृष्ठ १९५-९७ । ३. यह मैरित्सबर्गकी संसदीय वाद-विवाद समिति [पार्लियामेन्टरी डिबेटिंग सोसाइटी] की एक बैठकमें ३-३-१९१० को दिया गया था । Gandhi Heritage Portal