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११५. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

रविवार [ मार्च १३, १९१०]

नेटालके सत्याग्रही

नेटालके सत्याग्रही फिर बिना गिरफ्तार हुए ट्रान्सवालमें दाखिल हो गये हैं। फोक्सरस्ट पहुँचनेपर एक अधिकारी उनके पास आया और उसने उन्हें बताया कि उनको गिरफ्तार करनेकी आज्ञा नहीं दी गई है। इससे सबको निराशा हुई। उन्हें जोहानिसबर्गके टिकट लेने पड़े और वे आगे बढ़े।

श्री काछलिया, श्री वाजा, श्री डेविड अर्नेस्ट और श्री डेविड मेरी सत्याग्रहियों में शामिल होने और गिरफ्तार होनेके लिए चार्ल्सटाउन गये थे। वहाँ श्री साले इब्राहीम पटेल भी उनके साथ आ गये । चार्ल्सटाउन, फोक्सरस्ट और स्टैंडर्टनमें स्थानीय भारतीय रेलगाड़ीपर उनसे मिलनेके लिए आये थे ।

जोहानिसबर्ग पहुँचते ही इमाम साहब श्री अब्दुल कादिर बावजीर बहुत सबेरे उनको लिवाने आये। उन्होंने वहाँ सबको भोजन कराया। फिर भिन्न-भिन्न जातियोंके भारतीयोंने अपनी-अपनी जातिके भारतीयोंको अपने-अपने घरोंमें ठहराया। सभी सत्या- ग्रहियोंको एक ही स्थानपर रखनेका प्रबन्ध किया जा रहा है।

अभीतक तो रेल-भाड़ेमें बड़ा खर्च हुआ है। आगे क्या होता है, यह देखना है । सब लोग सोमवारसे फेरी लगाना आरम्भ कर देंगे। खयाल है कि वे फेरी लगाकर अपना खर्च निकालेंगे और फेरी लगाते-लगाते गिरफ्तार होंगे।

'हिन्द स्वराज्य' पर रोक

भारतसे तार द्वारा खबर मिली है कि भारतमें श्री गांधीकी लिखी 'हिन्द स्वराज्य पुस्तकको बेचनेपर रोक लगा दी गई है। यह एकदम आश्चर्यकी बात तो नहीं है। उस पुस्तकके कुछ विचार ब्रिटिश सत्ताके विरुद्ध पड़ते हैं। सरकारको यह डर लगा जान पड़ता है कि इससे गर्म दलको जोर मिलेगा और बम आदि अधिक काममें लाये जायेंगे। श्री गांधी उसका अंग्रेजी अनुवाद' प्रकाशित कराना चाहते हैं । उद्देश्य यह है कि गोरे उसे बड़ी संख्या में पढ़ें। इसके लिए रुपयेकी आवश्यकता होगी । वह पुस्तक लागत मूल्यपर बेची जायेगी। जिनकी इच्छा इस काममें सहायता करनेकी हो वे श्री गांधीको या फीनिक्सके व्यवस्थापकको पत्र लिखें। उस अनुवादको 'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसको अलग छपवानेमें कुछ अधिक समय लगेगा; परन्तु प्रत्येक प्रतिका लागत मूल्य छ: पेनीसे अधिक नहीं हो सकता। प्रत्येक भारतीयको चाहिए कि वह इस अनुष्ठानमें सहायता पहुँचाय । ।

१. देखिए "हिन्द स्वराज्यके अनुवादकी भूमिका ", पृष्ठ २०३-०५ ।