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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे दुःख होता है कि मौलवी साहब द्वारा प्रकाशित भेंटके विवरणमें मेरे कथनको तोड़ा-मरोड़ा गया है। मेरे साथ बातचीत खत्म होनेपर उन्होंने सन्तोष प्रकट किया था और कहा था कि उन्हें पूरा इतमीनान हो गया है। उन्होंने इस लड़ाई में पूरी सहायता देनेका वचन भी दिया था। फिर भी भेंटका जो विवरण उन्होंने प्रकाशित किया है, वह लड़ाईके लिए हानिकर हो सकता है ।

मैंने उन्हें बताया था कि सत्याग्रह कोषका आरम्भ कैसे हुआ। मैंने प्रो० गोखलेको अपने इंग्लैंडसे पत्र लिखनेकी बात बताई। श्री पोलकको लिखे पत्रकी बात कही । उन पत्रोंमें मैंने लड़ाईके कारण अपने ऊपर 'इंडियन ओपिनियन' के सम्बन्धमें कर्ज हो जानेकी बात लिखी थी, यह मैंने मौलवी साहबको कहा। मैंने बताया कि उन पत्रोंके उत्तरमें रुपया आया था। फिर मैंने प्रो० गोखलेको जो पत्र लिखा, उसमें 'इंडियन ओपिनियन का कर्ज चुकानेमें, संघके स्थानीय कार्यालय और इंग्लैंडके कार्यालयका खर्च चलानेमें एवं निर्धन कुटुम्बोंका गुजारा करनेमें रुपये खर्च करनेकी बात लिखी थी - - यह भी कहा । यह खर्च उचित हुआ है, ऐसा पत्र प्रो० गोखलेने भेजा है, यह भी बताया। प्रो० गोखलेने और श्री पेटिटने सत्याग्रहमें उस रुपयेको किस प्रकार खर्च किया जाये, यह तय करना मेरे अधिकारमें रखा है, यह बात मैंने मौलवी साहबको बता दी थी। मैंने उनसे कहा था कि फिर भी मेरा इरादा अपनी इच्छाके अनुसार खर्च करनेका नहीं है। मैं उस रुपयेको खर्च करनेमें श्री काछलिया और अन्य सत्याग्रहियोंसे सलाह लेता हूँ। मैंने बताया कि उस कोषके लिए मैंने अलग खाता खोला है, संघर्ष खत्म होनेपर कुल खर्चका हिसाब भी छापा जायेगा । और खर्च किस तरह किया जाता है, यह इस वक्त भी प्रो० गोखलेको बताया जाता है। इस- पर मौलवी साहबने पूरा सन्तोष प्रकट किया।

तीसरे दर्जेमें सफर करनेके बारेमें मैंने बताया कि मैं दूसरे भारतीयोंको फिलहाल तीसरे दर्जेमें सफर करनेकी सलाह नहीं देता, किन्तु मैंने अपने लिए यह चुनाव इन कारणोंसे किया है :

१. ट्रान्सवालकी रेलके विनियम बन गये हैं।
२. सत्याग्रहके कोषमेंसे रुपया खर्च होता है।
३. मैं खुद गरीब हो गया हूँ और दूसरे सत्याग्रही भी ऐसी ही स्थितिमें आ गये हैं ।
४. मुझे अपने मनकी वर्तमान अवस्थामें इस प्रकार यात्रा करना अच्छा लगता है।
५. केपमें काफिर मुसाफिरोंको तीसरे दर्जेमें जो तकलीफें सहनी पड़ती हैं, उनका हाल मैंने पढ़ा तो मैं काँप उठा और मेरी इच्छा हुई कि मैं उस दर्जेकी यात्राकी तकलीफोंका अनुभव करूँ ।

१. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ३०७ । २. यह उपलब्ध नहीं है । ३. देखिए "पत्र: गो० कृ० गोखछेको", पृष्ठ १००-०२ । ४. देखिए “ पत्र : गो० कृ० गोखलेको ”, पृष्ठ २४५-४९ ।