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पत्र : एम० पी० फैन्सीको
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६. मैं नेटालके व्यक्तिकरके सम्बन्ध में गिरफ्तार किया गया था। तबसे मेरा यह विचार बना है कि यदि मैं गरीब भारतीयकी तरह ही रहूँ तो [ भारतीय समाजकी ] अधिक सेवा कर सकूँगा । मैंने इतना समझाया। फिर भी मौलवी साहबका खयाल यही रहा कि तीसरे दर्जेमें यात्रा करना वैसी ही गलती है जैसी पहले अँगुलियोंके निशान देनेमें की गई । उसपर मैंने कहा कि अँगुलियोंके निशान देनेमें गलती हुई थी, यह मैं नहीं मानता और तीसरे दर्जेको यात्राके बारेमें मैंने सही कदम उठाया है। फिर मैंने उन्हें यह भी कहा कि मुझे हमेशा तीसरे दर्जेमें ही यात्रा करनी है, ऐसा भी नहीं है। अन्तमें मैंने यह दलील भी दी कि बहुतसे भारतीय गिरफ्तार होनेके लिए जायें और पहले या दूसरे दर्जेमें सफर करें तो ज्यादा खर्च होगा । स्वामी शंकरानन्दके विचारोंके सम्बन्धमें मैंने कहा कि जो लोग साथ-साथ और समान बनकर रहना चाहते हैं उनमें समान बल होना चाहिए, उनकी काठियावाड़ आर्य मण्डलमें कही गई यह बात मुझे उचित लगी है। स्वामीजीने कहा कि चार साथियों में तीन शस्त्रधारी हों तो चौथेको भी शस्त्रधारी होना चाहिए, यह मुझे अच्छा लगा है। साथ ही मैंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मेरे मनमें शस्त्रका अर्थ सत्याग्रह है। मैंने अपनी यह मान्यता भी बतलाई कि सत्याग्रहीके निकट तलवार किसी कामकी नहीं दे सकती। मैंने यह विचार व्यक्त किया कि यदि कोई व्यक्ति दो जातियोंमें झगड़ा करवाना चाहे तो मैं इसके नितान्त विरुद्ध हूँ। मौलवी साहब इन विचारोंसे भी सन्तोष प्रकट करके गये थे। इसलिए जब मैंने उनके द्वारा प्रकाशित भेंटका विवरण देखा तब मुझे कौमके खातिर अफसोस हुआ। मैंने ऊपर जो दिया है, वह भेंटका सार मात्र है। 'इंडियन ओपिनियन में खर्च किये गये रुपयेके बारेमें मौलवी साहबने मुझसे जो विशेष प्रश्न किये थे, उनका उत्तर मैंने दिया है। उसकी प्रतिलिपि भी आपको भेजता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-३-१९१०

मैं हूं,
भारतका सेवक, मोहनदास करमचन्द गांधी

१. देखिए " मर्क्युरीमें स्वामीजीका भाषण", पृष्ठ ३०४ । २. देखिए “पत्र: मौलवी अहमद मुख्तयारको", पृष्ठ १८९-९० । Gandhi Heritage Heritage Portal