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१२०. और सत्याग्रही

पिछले सप्ताह' श्री गांधी ट्रान्सवालमें अपने साथ खासी अच्छी संख्यामें सत्याग्रही ले कर गये। हम अपने स्तम्भोंमें इनकी जो सूची दे रहे हैं, उसमें भारतके प्रायः सभी मुख्य-मुख्य प्रान्तोंके लोग हैं। यह एक शुभ लक्षण है कि उपनिवेशमें पैदा हुए बहुत-से भारतीय संघर्षमें शरीक हो रहे हैं। इससे संघर्षको तो बल मिलता ही है; परन्तु इसमें उनका अपना भी निःसन्देह बहुत बड़ा लाभ है; क्योंकि कष्ट सहनकी इस पाठशाला में उन्हें सच्ची शिक्षा मिलती है। ट्रान्सवाल जानेवाले नौजवानोंको जो अनुभव मिल रहा है वह भावी जीवनमें उनके बहुत काम आयेगा । इसलिए जो बहादुर सोच-समझकर कष्ट सहनके लिए ट्रान्सवाल गये हैं, उन्हें हम बधाई देते हैं। उन्हें विदा करने के लिए बहुत बड़ी संख्या में सभी प्रकारके लोग स्टेशनपर गये, यह उचित ही था। ट्रान्सवालकी सरकारने सत्याग्रहियोंको फिर निराश किया है । प्रवासी अधिकारी (इमीग्रेशन अफसर) ने उन्हें सीमापर गिरफ्तार नहीं किया। हम इसे सत्याग्रहियोंकी सचाईका एक बहुत बड़ा प्रमाणपत्र मानते हैं । ये लोग अपना नाम, दस्तखत अथवा अँगुलियोंका निशान दिये बगैर उस उपनिवेशमें प्रविष्ट हो गये। इसलिए उनकी शिनाख्त एकमात्र उनकी सचाई रह गई। सरकार जानती है कि ये सत्याग्रही अपना कोई स्वार्थ नहीं साधना चाहते और न उपनिवेशमें ही रहना चाहते हैं। बल्कि ज्यों ही भारतीयोंकी माँगें पूरी हो जायेंगी त्यों ही वे उपनिवेशसे चले जायेंगे । परन्तु भारतीय समाजके लिए इस तरह सीमापर गिरफ्तार न किये जानेका अर्थ है धन और शक्तिकी बहुत बड़ी बर्बादी । यह अनिवार्य है । ट्रान्सवालकी सरकार हमारे साधनोंको समाप्त कर देना चाहती है, इसीलिए हमें उसका जवाब देनेके लिए तैयार रहना चाहिए। परिणामोंकी परवाह किये बिना निधड़क आगे बढ़ते जानेसे ही यह सम्भव हो सकता है । सत्याग्रहीको तो सही काम करनेमें ही सन्तोष मानना चाहिए। [ {{leftअंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-३-१९१०}} १. ११-३-१९१० को । २. डर्बन स्टेशनपर । Gandhi Heritage Porta