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{{c|{{larger|१२२. पत्र: ब्रिटिश वाणिज्यदूतको

[ जोहानिसबगं ]
मार्च १९, १९१०

महोदय, आपका इसी १५ तारीखका पत्र संख्या ६१/१० एम० मिला। मेरा पत्र उस सूचनापर आधारित था, जो यहाँ मेरे संघके एक सदस्यको एक सम्बन्धित व्यक्तिने तमिल भाषामें लिखकर भेजी थी। मेरा संघ शिकायत करनेवाले लोगों की बातोंको स्वीकार करने में पूरी सतर्कतासे काम लेता है। मैं इस सुझावके लिए तो आपको धन्यवाद देता हूँ कि भविष्यमें आरोप अत्यन्त सतर्कतासे स्वीकार किये जाने चाहिए; परन्तु मैं यह भी कहूँगा कि लॉरेंजो माक्विस नगरपालिकाके प्रशासकने आपको जो उत्तर भेजा है वह बिलकुल असन्दिग्ध तो कदापि नहीं माना जा सकता। क्या प्रशासक स्वयं कैदियोंसे मिले थे ? क्या वाणिज्य दूतावासने किसीको वहाँ भेजा था ? जबतक इन मोटी-मोटी बातोंका ध्यान न रखा गया हो, तबतक यह नहीं कहा जा सकता कि मेरे संघको जो बातें भेजी गई हैं वे "बिलकुल गलत और निराधार हैं।" यदि प्रशासककी पूछताछ उन्हीं अधिकारियों तक सीमित हो, शिकायत करनेवाले लोग जिनके अधीन थे, तो स्पष्ट है कि उनकी दिलचस्पी इन बातोंका खण्डन करनेमें ही होगी, क्योंकि उन बातोंसे वे अपराधी ठहर सकते थे या फिर कुछ नहीं तो अपने उच्चाधिकारियोंकी झिड़की खानी पड़ती। {{left[ अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-३-१९१०}} १. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष, श्री अ० मु० काछलियाने लॉरेंजो माविस-स्थित ब्रिटिश वाणिज्यदूतको भेजा था । वाणिज्यदूतने लॉरेंजो मार्विवसमें हुई वटनाका खण्डन किया था। उस खण्डनके उत्तर में ही यह पत्र लिखा गया था; देखिए " पत्र : उपनिवेश सचिवको”, पृष्ठ १९९ । २. देखिए “पत्र: उपनिवेश सचिवको”, पृष्ठ १९९ । Gandhi Heritage Portal