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१२३. 'हिन्द स्वराज्य' के अनुवादकी भूमिका

जोहानिसबर्ग
मार्च २०, १९१०

' हिन्द स्वराज्य 'का अंग्रेजी अनुवाद जनताके सामने पेश करते हुए मुझे कुछ संकोच हो रहा है। एक यूरोपीय मित्र के साथ इसकी विषय-वस्तुपर मेरी चर्चा हुई थी। उन्होंने इच्छा प्रकट की कि इसका अंग्रेजी अनुवाद किया जाये; इसलिए अपने फुरसतके समयमें, मैं जल्दी-जल्दी बोलता गया और वे लिखते गये। यह कोई शब्दशः अनुवाद नहीं है । परन्तु इसमें मूलके भाव पूरे-पूरे आ गये हैं। कुछ अंग्रेज मित्रोंने इसे पढ़ लिया है और जब रायें माँगी जा रही थीं कि पुस्तकको प्रकाशित करना ठीक है या नहीं, तभी समाचार मिला कि मूल पुस्तक भारतमें जब्त कर ली गई है। इस समाचारके कारण तुरन्त निर्णय लेना पड़ा कि इसका अनुवाद प्रकाशित करनेमें एक क्षणकी भी देर नहीं की जानी चाहिए। मेरे 'इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस के साथी कार्यकर्ताओंकी भी यही राय रही और उन्होंने अतिरिक्त समय काम करके केवल इस कामके प्रति प्रेमके कारण ही –– मुझे, आशासे कम समयमें, इस अनुवादको जनताके सामने रखनेमें सहायता दी। पुस्तक जनताको लागत मूल्यपर ही दी जा रही है। बहुत-से मित्रोंने मुझे इसकी प्रतियाँ स्वयं अपने लिए और लोगोंमें बाँटनेके लिए खरीदनेका वचन दिया है। यदि उनसे यह आर्थिक सहायता न मिली होती तो शायद यह पुस्तक प्रकाशित ही न हो पाती ।

मूलमें जो अनेक खामियाँ हैं उनका मुझे खूब ज्ञान है । अंग्रेजी अनुवादमें भी इनका और साथ ही दूसरी बहुत-सी भूलोंका आ जाना स्वाभाविक है। क्योंकि मैं मूलके भावोंको सही-रूपमें अनुवादित नहीं कर सका हूँ। जिन मित्रोंने अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा है उनमें से कुछने पुस्तकके विषयका निरूपण संवाद रूपमें करनेपर आपत्ति की है। मेरे पास इस आपत्तिका कोई जवाब नहीं है. • सिवा इसके कि इस रूपमें लिखना गुजरातीमें सरल होता है और उसमें कठिन विषयोंको समझानेका यही सबसे अच्छा तरीका माना गया है। अगर मैंने मूलतः अंग्रेजी पढ़नेवालोंको ध्यान में रखकर लिखा होता तो विषयका प्रतिपादन बिलकुल दूसरे प्रकारसे किया गया होता। इसके अलावा जिस रूपमें संवाद दिया गया है उसी रूपमें कितने ही मित्रोंसे, जो ज्यादातर 'इंडियन ओपिनियन' के पाठक हैं, मेरी प्रत्यक्ष बातचीत भी हुई है ।

'हिन्द स्वराज्य' में प्रकट किये गये विचार मेरे विचार हैं और मैंने भारतीय दर्शन शास्त्रके आचार्योंके साथ-साथ टॉल्स्टॉय, रस्किन, थोरो, इमर्सन और अन्य १. यह इंडियन ओपिनियन में निम्न लिखित शीर्षकोंके साथ प्रकाशित हुई थी : इंडियन होम रूलका प्रकाशन: गुजराती पुस्तकका अनुवाद : हिन्द स्वराज्य: भारत सरकार द्वारा जब्त । २. कैलेनबैक, देखिए महादेव देसाईकी हिन्द स्वराज्यकी भूमिका, १९३८ । ३. देखिए "हमारे प्रकाशन", पृष्ठ २६१-६२ ।