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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। भारतीय उसको बचाना चाहें तो इसके लिए उनमें साहस होना चाहिए। यदि भारतीय न हटें तो उन्हें हटाना मुश्किल है। यदि वस्तीमें आवाद भारतीयोंमें एकता होगी तो बस्ती बच जायेगी; अन्यथा वह गई ही समझनी चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-३-१९१०

१२६. पत्र : टी० श्रीनिवासको'

जोहानिसबर्ग
मार्च २४, १९१०

प्रिय महोदय,

आपके २० जनवरीके पत्रका उत्तर इससे पहले न दे सका। आशा है, आप इसके लिए क्षमा करेंगे। बात यह है कि मैं जोहानिसबर्गमें नहीं था । यहाँ तमिल भारतीयोंमें अधिकतर पिल्ले, मुडले, नायडू, चेट्टी और पडियाची हैं। तमिल ब्राह्मणोंकी संख्या बहुत कम है। उनमें से कुछ ईसाई हैं, जिन्होंने या तो दक्षिण आफ्रिकामें आकर धर्म-परिवर्तन किया है या जो उन ईसाई माँ-बापोंकी सन्तान हैं जिनमें से अधिकांश गिरमिटिया हैं। ईसाई समाज बहुत छोटा है, परन्तु लौकिक दृष्टिसे कुछ प्रगतिशील है। उन लोगोंने पाश्चात्य आदतों और प्रथाओंको लगभग पूरी तरह अपना लिया है। लेकिन इससे मातृभूमिके प्रति उनके प्रेममें कोई अन्तर नहीं दिखाई पड़ता। पता नहीं मैंने आपको जो जानकारी दी है, वह जो आप चाहते थे वही है या नहीं। यदि आप मुझे फिर पत्र लिखनेकी कृपा करें, तो मैं प्रसन्नतापूर्वक उसका उत्तर दूंगा । संघर्षमें जब विजय होगी, और यह अवश्य होगी, तब उस विजयको शीघ्रतासे निकट लानेका श्रेय भारतीय समाजके तमिल सदस्योंके अनुपम शौर्य और आत्म-त्यागको दिया जायेगा। मैं जब पहले-पहल दक्षिण आफ्रिका आया था, तभी मुझे उनमें कुछ ऐसी चीज दिखाई दी थी जिससे मैं उनकी ओर आकृष्ट हो गया था; लेकिन तब मैंने स्वप्नमें भी यह खयाल नहीं किया था कि वे राष्ट्रके लिए इतना अधिक साहस दिखा सकते हैं और उनमें कष्ट सहन करनेकी इतनी सामर्थ्य है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

टी० श्रीनिवास

बैरिस्टर
'क्रिटिक' कार्यालय
कोमलेश्वरनपेट

माउंट रोड, मद्रास

गांधीजीके हस्ताक्षर युक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी० एन० ३७७९) से ।