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१२७. निर्वासन

ट्रान्सवालके भारतीयोंको निर्वासनकी जो सजाएँ दी जा रही हैं, उनके बारेमें पढ़कर सभी न्यायप्रिय व्यक्तियोंको दुःख होगा। नेटालमें निर्वासत किये जानेका कोई बड़ा परिणाम नहीं होता, सिवा इसके कि भविष्यमें उनका कानूनी असर होगा जिसपर अभी हम विचार नहीं करना चाहते। परन्तु जब सत्याग्रहियोंको भारत निर्वासित किया जाता है तब ये निर्वासन बहुत गम्भीर रूप धारण कर लेते । ये निर्वासनकी सजाएँ ऐसे लोगोंको दी जा रही हैं जिनमें से बहुत से लोगोंने स्वेच्छासे अपने पंजीयन करा लिए हैं, जिन्हें एशियाई महकमा अच्छी तरह जानता है और जो सत्या- ग्रहीकी हैसियतसे जेलकी सजाएँ भी भोग चुके हैं। ये निर्वासन एशियाई-मात्रको निकाल बाहर करनेकी प्रक्रिया जान पड़ते हैं। हमारे जोहानिसबर्गके संवाददाताने हमारा ध्यान बार-बार इस बातकी ओर दिलाया है कि कुछ निर्वासित लोगोंका जन्म दक्षिण आफ्रिकामें ही हुआ है और कुछ तो अपने पीछे अपने परिवार भी यहाँ छोड़े जा रहे हैं। मातृभूमिसे अच्छी मदद मिलने के कारण इन परिवारोंका सत्याग्रह-कोषसे पोषण हो रहा है। अगर यह मदद यहाँ समयपर न पहुँच पाती तो इनका क्या हाल होता ? निःसन्देह उनके भूखों मरनेका भय था । हम, इन पृष्ठोंमें जो बात बार-बार कह चुके हैं, उसकी पुनरुक्तिकी जोखिम उठाकर भी अपने पाठकोंको फिर याद दिलाते हैं कि ये दूरगामी प्रभाव करनेवाली आज्ञाएँ बगैर किसी निष्पक्ष जाँचके दी जा रही हैं। ये मामले केवल प्रशासकीय तौर- पर अर्द्धगोपनीय ढंगसे चलाये जा रहे हैं। इन प्रशासकीय कार्योंके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें कोई अपील भी नहीं है। इस तरह यह सारी कार्रवाई ब्रिटिश पद्धतिके विपरीत है और सिर्फ जरा-सी कलम हिलाकर प्रजाजनोंकी आजादी छीनी जा रही है । जो बात कानूनमें नहीं है, उसकी पूर्ति बेईमान महकमा बड़ी छल-भरी चतुराईसे कर रहा है। कानूनके अनुसार देश-निकालेकी सजा पानेवालोंको केवल ट्रान्सवालकी सीमाके बाहर किया जा सकता है। इसलिए ट्रान्सवालकी सरकारने पड़ोसी पुर्तगाली सरकारसे एक समझौता कर लिया है । (शायद पड़ोसी ब्रिटिश उपनिवेश ट्रान्सवालके साथ ऐसा ओछा समझौता करना नहीं चाहते थे, या कर नहीं सकते थे ।) उस समझौते के अनुसार ट्रान्सवालकी सरकार इन सत्याग्रहियोंको पुर्तगाली प्रदेशोंकी सीमामें निर्वासित कर देती है और वहाँकी सरकार बगैर मुकदमा चलाये उन्हें भारत जानेवाले जहाज- पर चढ़ा देती है। यहाँ स्वभावतः एक सवाल खड़ा होता है। मान लें कि महामहिम सम्राट् जिस स्वायत्त शासन प्राप्त उपनिवेशको मंजूरी दे चुके हैं, उसकी कानूनी कार्यवाहियोंमें साम्राज्य सरकार दस्तन्दाजी नहीं कर सकती । परन्तु साम्राज्य सरकार उन ब्रिटिश भारतीयोंको, जो ट्रान्सवालके स्थायी निवासी बन चुके हैं, डेलागोआ-बे होकर चोरीसे १०-१४ Gandhi Heritage Porta