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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारत भेजे जानेको घोर उदासीनतासे क्यों देखती है ? उसके पास इसका कोई कानूनी औचित्य नहीं है। अगर पुर्तगाली सरकारसे ब्रिटिश उपनिवेशके बजाय कोई विदेशी राज्य ऐसा समझौता करता तो यह सन्धि-भंग कहा जाता और इसको लेकर शायद युद्ध छेड़ देना भी उचित ठहरता । इसलिए स्पष्ट है कि साम्राज्य सरकारकी अनुमतिके बगैर ट्रान्सवाल-सरकारके लिए भारतीयोंको निर्वासित करना सम्भव ही नहीं था। इस तरह इन अनेक भारतीय परिवारोंको बरबाद करनेमें साम्राज्य सरकार भी शरीक है । इससे बरबस नतीजा यह निकलता है कि केन्द्रीय सरकारने ब्रिटिश प्रजाजनोंके एक भागको दूसरे भागके अत्याचारसे बचानेका अपना प्राथमिक कर्तव्य छोड़ दिया है। वह ट्रान्सवाल-सरकारकी शक्तिके सामने पङ्गु हो गई है। बलवानके अत्याचारसे कमजोरकी रक्षा करनेमें वह असमर्थ है । अत्याचारियोंके अत्याचारोंको बढ़ावा देनेके लिए ही उसका अस्तित्व है। यह नतीजा दुःखजनक है; परन्तु यह अनिवार्य है। दक्षिण आफ्रिकाके साम्राज्यवादी उपर्युक्त तथ्योंपर अच्छी तरह विचार करें और अपने हृदयसे पूछें कि हम ऊपर जिस नतीजेपर पहुँचे हैं क्या वे उसका समर्थन नहीं करते । {{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-३-१९१०}}

१२८. क्रूगर्सडॉर्प बस्ती समिति

बस्ती-समिति (लोकेशन कमेटी) के सामने श्री बर्गरने जो गवाही दी है, वह उनकी स्पष्टवादिता, हृदयहीनता और अशिष्टताकी दृष्टिसे अद्भुत है। परन्तु हम उनके इस तथाकथित कीमती सबूतपर समिति द्वारा दी गई बधाईका समर्थन नहीं कर सकते। श्री बर्गरका निष्पक्ष साक्षी माने जानेका अधिकार अब नहीं रहा है। इसका कारण उनका वह वक्तव्य है जो उन्होंने अधिकारीके रूपमें उन प्रतिष्ठित भारतीय व्यापारियोंके सम्बन्धमें दिया है जिन्होंने लड़ाईसे पहले जब वे अधिकारी थे, उनसे भेंट की थी। उन्होंने उन्हें घृणासे कुलीका नाम दिया और कहा कि वे 'कुलियों' को इतना महत्त्व नहीं देते, इसलिए उन्होंने अपने और उनके बीच हुई बातचीत याद नहीं रखी। परन्तु श्री बर्गरने बुद्धिमानी की। उन्होंने समितिसे कहा कि उस समयकी गणतन्त्री-सरकार कुछ नहीं कर सकती थी, क्योंकि लन्दनके समझौते (कन्वेन्शन) से और ब्रिटिश प्रतिनिधि (एजेंट) की कार्रवाईसे उसके मार्गमें बाधा पड़ती थी। परन्तु श्री बर्गरने आगे कहा : किन्तु अब चूँकि सरकार कुछ भी करनेके लिए स्वतन्त्र है, इसलिए उसे छोटी-मोटी बातोंकी परवाह किये बिना इन कुलियोंको निकाल बाहर करना चाहिए। जो सरकार गणतन्त्रीय शासनकाल में भारतीयोंकी रक्षा करती थी और भारतीय बाजारोंको मुख्य सड़कोंपर रखवानेका आग्रह करती थी, वही अब उन्हें ऐसे दुर्गम स्थानमें खदेड़नेका माध्यम बनाई जा रही है जहाँ वे कोई व्यापार नहीं कर सकते। Gandhi Heritage Portal