पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/२५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
रंगदार लोगोंके विरुद्ध युद्ध
२१५

आकर्षित करता है, फिर भी संघको यह नहीं मालूम कि श्री इस्माइल आदम इस बारेमें अपनी ओरसे कोई कार्रवाई करेंगे या नहीं। कंडक्टर इतना भी खयाल नहीं करता कि यात्रियोंको चलती गाड़ीसे उतारनेका मतलब उनकी जानको जोखिम में डालना भी हो सकता है। इससे पता चलता है कि स्थिति असाधारण है । {{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन,}} ९-४-१९१०

१३३. रंगदार लोगोंके विरुद्ध युद्ध

जोहानिसबर्गकी नगरपालिकाको उकसाया जा रहा है कि वह अपने प्रत्येक भारतीय और वतनी कर्मचारीको, बिना इस बातकी परवाह किये कि उसने कितनी ईमान- दारीसे काम किया है या वह कितना पुराना सेवक है, निकाल बाहर करे । नगरपालिका अथवा कोई और विभाग अपनी नौकरीमें नये रंगदार आदमियों अथवा एशियाइयों को न ले, तो इसके विरोध में कुछ अधिक नहीं कहा जा सकता। परन्तु जो लोग पहलेसे काम कर रहे हैं उनको एकाएक निकाल देना नगरपालिका और उसे ऐसा करनेपर मजबूर करनेवालोंके लिए कोई अच्छी बात नहीं है। 'साउथ आफ्रिकन न्यूज' ने इस बारेमें बहुत ठीक लिखा है: काले आदमीको नीचेसे हटाकर उसकी जगह गोरेको रख दीजिए। जैसा कि सुझाया गया है, वर्तनियोंसे खेत छोनकर गोरे निवासियोंको दे दीजिए। और फिर सोचिए कि इन हटाये गये वर्तनियोंका क्या होगा? गरीब गोरोंकी समस्या हल करने की अपेक्षा इस समस्याका हल करना कहीं अधिक मुश्किल होगा। जबतक वतनियोंसे उनके साधन नहीं छोने जायेंगे तबतक कोई समस्या खड़ी नहीं होगी; किन्तु जैसे ही आपने उन्हें अलग बाड़ोंमें रखा, उनका दमन किया या स्थायी रूपसे उन्हें बेरोजगार बना तो आप उसी क्षण उस महान् संकटको न्योता देंगे जो दमन-नीति अपनानेसे पैदा होता है । इसमें कोई शक नहीं कि यदि एशियाई और खास तौरपर वतनी कर्मचारियोंको निर्दयतापूर्वक और अविचारपूर्वक हटाया जायेगा तो इसका परिणाम भयंकर ही होगा। परन्तु एशियाइयों और रंगदार जातियोंके खिलाफ यह जो हलचल जारी है इससे ब्रिटिश भारतीयों, अन्य एशियाइयों तथा वतनियोंको भी आवश्यक सबक तो सीख ही लेना चाहिए । वतनियोंको गोरे उपनिवेशियोंपर इसके लिए निर्भर नहीं रहना चाहिए कि वे उनके लिए काम खोजें, या उन्हें काम दें। अपनी जीविका के लिए उन्हें स्वतन्त्र साधन तलाश करने होंगे और जैसे ही कुछ नेता स्वयं इस समस्याको हल करने में लगेंगे यह अत्यधिक सरल नज़र आयेगी। {{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-४-१९१०}} Gandhi Heritage Portal