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१३५. पश्चिमकी भयंकर सभ्यता

विलायतके 'द न्यू एज' नामक समाचारपत्रमें उक्त विषयपर एक व्यंग्यचित्र (कार्टून) छपा है। हम इस अंकमें उसकी प्रतिकृति दे रहे हैं। उसमें एक लश्कर कूच करता हुआ दिखाया गया है। सबसे पीछे दिखाया गया है कि एक विचित्र और भयंकर आकृतिका सेनापति । इस विकराल आकृतिके शरीरके चारों ओर धुँआ उगलती हुई बन्दूक और खूनसे तर-बतर तलवारें झूल रही हैं और सिरपर तोप है । बाजूमें झूलते हुए बिल्लेपर खोपड़ीका चित्र है और बांहपर क्रॉसका चिह्न अंकित है । (क्रॉसका चिह्न घायलोंकी सेवा-सुश्रूषा करनेवाली टुकड़ीका चिह्न होता है। ) मुँहमें दाँतोंसे ऐसा खंजर पकड़े हुए है जिससे खून टपक रहा है। कन्धेपर कारतूससे भरी हुई पेटी दिखाई देती है। इस सम्पूर्ण चित्रका नाम दिया है 'मार्च ऑफ सिविलाइजेशन' (अर्थात् सभ्यताका कूच ) । इस व्यंग्यचित्रका जो वर्णन ऊपर दिया गया है उसे पढ़कर किसी भी व्यक्तिका चेहरा गम्भीर हुए बिना नहीं रह सकता। इसपर विचार करें तो ऐसी प्रतीति हुए बिना नहीं रह सकती कि इस चित्र में क्रूरताका जो भाव अंकित किया गया है पश्चिमकी सभ्यता वैसी ही और कदाचित् उससे भी अधिक क्रूर है। सबसे अधिक क्षोभजनक बात तो यह है कि लहूसे सने हथियारोंके बीचमें एक बड़ा क्रॉसका चिह्न अंकित किया गया है। यहाँ नई सभ्यताके दम्भकी हद हो जाती है। पहले भी बहुत खूंख्वार लड़ाइयाँ होती थीं, किन्तु उनमें आधुनिक सभ्यताका दम्भ नहीं था। इस चित्रके दर्शनके साथ ही हम अपने पाठकोंको सत्याग्रहके खुदाई नूरकी झाँकी दिखाना चाहते हैं। एक तरफ पैसेकी भूख और दुनियाके भोगोंकी लालसाको पूरा करनेके लोभसे भेड़ियेकी तरह विकराल ऊपर जैसी सभ्यताको देखिये और दूसरी तरफ सच्ची टेकके लिए, रूहानियतके लिए और खुदाई फरमानको बजा लानेके लिए धीरजसे भरी छाती, हँसते चेहरे और आँखोंमें आँसूकी बूंद लाये बिना दुष्टोंके हाथसे संकट सहनेवाले सत्याग्रहीके चित्रका दर्शन कीजिए। इन दो दृश्योंमें से पाटकोंका मन किसकी ओर खिंचेगा? हम विश्वासके साथ कह सकते हैं कि सत्याग्रहीका दृश्य ही मनुष्य-जातिके हृदयको पिघला सकेगा और उसके संकटका बोझ जैसे-जैसे बढ़ेगा वैसे-वैसे उसका प्रभाव अधिक गहरा होता जायेगा। ऐसा कौन है जिसके मनमें केवल इस एक दृश्यको देखकर ही यह भाव अंकुरित न हो कि मनुष्य-जातिको मुक्ति और शक्ति दिलानेवाला एक मात्र उपाय सत्याग्रह ही है। हम मानते हैं कि गोली मारनेकी अपेक्षा गोलीसे मरने या फाँसीपर चढ़ने आदि सभी कार्योंमें धैर्यको परीक्षा होती है। फिर भी सत्याग्रही द्वारा दुःख भोगने, एक लम्बी अवधि तक शान्त मनसे अत्याचार सहने और बिना गोली मारे गोली खाकर मरनेमें जिस धैर्य और साहसकी जरूरत होती है, दूसरेको मारकर मरनेमें उसके शतांशकी भी जरूरत नहीं होती। सत्याग्रहके बलको झुकानेकी 13704 महावाह-130 Gandhi Heritage Porta