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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि कोई व्यक्ति बिना कुछ लिये हमारी रक्षा करता है अथवा हम उसे अपनी रक्षाके बदलेमें कुछ देते हैं तो हम कमजोर माने जायेंगे। यदि हमें पिण्डारियों आदिके त्राससे बचनेके लिए दूसरोंकी सहायता लेनी पड़ती है तो हम स्वराज्यके अयोग्य हैं। यदि हम उन्हें शरीर-बल द्वारा परास्त करना चाहते हैं तो हमें अपने भीतर ही शरीर- बल उत्पन्न करना होगा। उस हालतमें हमें कर देनेकी आवश्यकता न रह जायेगी । नारी अपने स्वत्वके रूपमें अपने पतिसे रक्षण माँगती है; परन्तु वह अबला ही मानी जाती है। २२०

स्वराज्य उनके लिए है जो उसे समझते हैं। तुम और हम तो उसे आज भी भोग सकते हैं। उसी प्रकार औरोंको सीखना होगा। किसीका दिलाया हुआ राज्य स्वराज्य नहीं पर राज्य है, फिर दिलानेवाला चाहे भारतीय हो चाहे अंग्रेज | गो-रक्षा प्रचारिणी समितियोंको गो-वध प्रचारिणी समितियाँ कहना ठीक होगा। क्योंकि उनका उद्देश्य गायको छुड़ा लाना अथवा मुसलमानोंपर दबाव डालकर बचाना है। धन देकर गायको छुड़ानेसे गायकी रक्षा नहीं होती। यह रास्ता तो कसाईको धोखेबाजी सिखानेका है। अगर हम मुसलमानोंपर दबाव डालनेका रास्ता अख्तियार करेंगे तो वे और अधिक गो-वध करेंगे। परन्तु यदि हम उन्हें समझा लें या उनके विरुद्ध सत्याग्रह करें तो वे गायकी रक्षा करेंगे। ऐसा करनेके लिए गो-रक्षा प्रचारिणी सभाकी आवश्यकता नहीं। इस सभाका काम तो हिन्दुओंको हिन्दूपन सिखाना होना चाहिए । बैलको कम दाना देने, पैने आरेसे टोचने, उससे बूतेसे ज्यादा काम लेने और इस प्रकार उसे कष्ट देकर मारनेसे तो तलवारकी एक ही चोटसे उसका काम तमाम कर देना ज्यादा अच्छा है।

श्री रामचन्द्र अथवा अन्य महापुरुषोंके उदाहरणोंका अक्षरशः स्थूल अर्थ लेना बहुत उलझनमें पड़ना है। रावणका दश-शीश और बीस भुजावाले शरीरके रूपमें होना मुझे सम्भव नहीं लगा, परन्तु उसे महाविषयी और जड़ मानकर रामचन्द्रजी रूपी चैतन्यने उसका विनाश किया, यह बात समझमें आ सकती है। तुलसीदासजीने राम- चन्द्रजीको मद, मोह और महा ममता रूपी रजनीके तमपुंजका नाश करनेवाले भगवान् भास्करकी सेनाका रूप दिया है। जब हममें मद, ममता और मोह शेष नहीं रहेंगे, तब क्या तुम समझते हो कि हममें किसीके भी शरीरका नाश करनेकी कामना लेश-मात्र भी रह सकती है ? अगर तुम 'नहीं' कहते हो तो रामचन्द्रजी, जो अभिमान, ममता, मोह आदिसे रहित और दयाके निधान थे, रावणका वध किस प्रकार कर सकते थे ? फिर भी, जब हम उस विभूतिको प्राप्त कर लेंगे और लक्ष्मणकी तरह १४ वर्ष तक निद्राका त्याग कर देंगे और ब्रह्मचर्यका पालन करेंगे, तब समझ सकेंगे कि शरीर- बलका प्रयोग कहाँ किया जा सकता है । मैं यह कहना चाहता हूँ कि विनम्रतासे सब सुलभ हो जाता है। तुमने ट्रान्स- वालकी मिसाल ठीक दी है। मुँहसे यह कहते रहना काफी नहीं है कि तुममें उक्त भाव मौजूद है। वह भाव कसौटीपर कसा जाना चाहिए। यह तो सोचो कि हरिश्चन्द्रको सत्यके प्रति अपनी निष्ठा सिद्ध करनेसे पूर्व कितने संकटोंका सामना करना पड़ा था। Portal Gandhi Heritage