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पत्र: मगनलाल गांधीको
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यह भी सोचो कि सुधन्वाकी भक्ति खरी सिद्ध हुई, उससे पूर्व उसे कितने कष्ट सहन करने पड़े थे। इन्हें केवल दन्तकथा मान लेनेका कोई कारण नहीं है। नाम और रूप भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। परन्तु जिन्होंने इन कथाओंको लिखा है, उन्होंने इनके द्वारा अपने अनुभव व्यक्त किये हैं। ट्रान्सवालमें भी मुझ जैसे लोग जो आवाज उठा रहे हैं, कसौटीपर कसे जा रहे हैं। यह भी याद रखो कि सत्याग्रही माने जानेवाले बहुत-से दम्भी निकले हैं। अब सच्चा सत्याग्रही किन्हें कहा जाये ? दया आदि गुणोंसे सम्पन्न व्यक्तियोंको। यह बात कहीं नहीं लिखी गई है कि उन्हें कष्ट सहन न करना होगा । फिर दुःख कहते किसे हैं ? गीता कहती है कि मन ही बन्धन तथा मोक्षका कारण है। सुधन्वा खौलते तेलमें डाल दिया गया था। जिस व्यक्तिने उसे तेलमें डलवाया था उसने सोचा था कि उसे इससे दुःख होगा; किन्तु सुधन्वाको उससे अपनी भक्तिकी तीव्रताको प्रदर्शित करनेका सुअवसर मिल गया ।

सब लोग एक ही समय गरीब हो जायें या धनाढ्य बन जायें ऐसा कभी नहीं होगा। परन्तु यदि हम भिन्न-भिन्न व्यवसायोंकी अच्छाइयों और बुराइयोंपर विचार करें तो विदित हो जायेगा कि संसारका निर्वाह किसानोंसे हो रहा है। किसान तो गरीब ही हैं । यदि कोई वकील परमार्थका दम भरता है तो उसे अपनी आजीविका अपने शरीरके श्रमसे कमानी चाहिए और वकालत निःशुल्क करनी चाहिए। वकील आलसी हैं यह बात तुम्हें एकाएक न जँचेगी। जिस प्रकार कोई विषयी पुरुष अत्यधिक भोग- विलासके कारण, शिथिल हो जानेपर विषयोंमें लीन रहता है, उसी प्रकार एक वकील शक्तिविहीन हो जानेपर भी धन कमाने, बड़ा बनने और बादमें सुख से रहनेकी इच्छासे जी-तोड़ परिश्रम करता रहता है। वह अपने जीवनका अन्तिम भाग ऐशोआराममें बिताना चाहता है। उसका लक्ष्य यही रहता है। मैं जानता हूँ कि इसमें थोड़ी अतिशयोक्ति है। परन्तु जो-कुछ मैंने कहा है वह बहुत अंशोंमें ठीक है।

डॉक्टरोंकी टोली देशकी क्या सेवा करेगी ? वे पाँच-सात वर्ष तक मृत शरीरोंकी चीरफाड़ करते हैं, जीवोंको जानसे मारते हैं और अनुपयोगी सूत्रोंको कण्ठस्थ करते हैं। इससे वे कौन-सी बड़ी चीज हासिल करते हैं ? शारीरिक रोगोंके निवारणकी योग्यतासे देशका क्या लाभ होगा ? उससे तो हमारे मनमें शरीरके प्रति ममत्व ही बढ़ेगा। हम चिकित्सा शास्त्र के ज्ञानके बिना भी रोगोंकी रोकथामकी योजना बना सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि डॉक्टरों या चिकित्सकोंकी आवश्यकता ही नहीं है। वे तो हमारे पीछे रहेंगे ही। कहनेका अर्थ यह है कि बहुत से युवक इस पेशेको अनुचित महत्त्व देकर इस शास्त्र के अध्ययनमें सैकड़ों रुपये और कई साल बरबाद करते हैं न होना चाहिए। यह जान लेना चाहिए कि डॉक्टरोंसे हमें रत्ती भर भी लाभ नहीं हुआ है और न होनेवाला ही है । - यह - . यह है तुम्हारी शंकाओंका उत्तर । भारतके उद्धारका बोझ अपने कन्धोंपर उठानेका अनावश्यक कार्य मत करो। अपना उद्धार करो। इतना ही बोझ बहुत है।

१. मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । यह श्लोक जो प्रायः गीताका बताया जाता है, ब्रह्मविन्दु उपनिषद्का है । Gandhi Heritage Portal