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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सब-कुछ अपने ही ऊपर लागू करो। तुम्हीं भारत हो, इस ज्ञानमें आत्माकी प्रौढ़ता निहित है। तुम्हारे उद्धारका अर्थ भारतका उद्धार है। बाकी सब ढोंग है। अगर तुम्हें यह रुचिकर प्रतीत हो तो इसमें लगे रहो। दूसरोंकी चिन्ता न मुझे करनेकी जरूरत रह जाती है और न तुम्हें । दूसरोंकी चिन्ता करनेमें हम अपने कर्तव्यको भूल जायेंगे और सब कुछ गँवा बैठेंगे। इसपर परमार्थकी दृष्टिसे विचार करना न कि स्वार्थकी दृष्टिसे। और कुछ पूछना हो तो पूछना ।

मोहनदासके आशीर्वाद

रावजीभाई पटेल द्वारा लिखित गुजराती पुस्तक 'गांधीजीनी साधना' तथा डाह्याभाई पटेल द्वारा सम्पादित 'महात्मा गांधीजीना पत्रो 'से ।

सोमवार [ अप्रैल ४, १९१०]

सर्वश्री डेविड सॉलोमन, मूनसामी चेलन, मूनसामी पॉल, जॉन एडवर्ड, धोबीसामी और चिल्लिया अब निर्वासित कर दिये गये हैं। इसी २ तारीखको सर्वश्री गोविन्दसामी एन० पिल्ले, कनाबथे एन० पिल्ले, एलारी मूनसामी, मदुराई मुतू, जॉन लाजारस, मूनसामी, चिन्नासामी, और गोविन्दसामी गिरफ्तार कर लिये गये। उनमें से दो नवयुवक हैं और सभी एक यूरोपीयके सिगारके कारखानेमें नौकर थे। ये मामले खास किस्मके हैं। श्री डेविड सॉलोमन और उनके तीन साथी ट्रोकाडीरोमें वेटरका काम कर रहे थे। इस प्रकार इन लोगोंके मुँहका कौर सचमुच ही छीन लिया गया है। इनमें से ज्यादातर लोग स्वयंसेवक बन चुके हैं। लेकिन सचाई यह है कि सरकार तमिल समाजको कुचल देना चाहती है। इसलिए वह उन्हें हर जगहसे निकाल रही है और ये लोग तुरन्त दण्डित किये जानेके बजाय एक जगहसे दूसरी जगह खदेड़े जा रहे हैं। उन्हें सब तरहकी प्रशासनिक जाँच-पड़तालसे होकर गुजरना पड़ता है और यदि सरकार उनको निर्वासित करनेकी सूरत निकाल सकती है तो वे भारतको निर्वासित कर दिये जाते हैं। निर्वासनके प्रश्नपर मैंने अभी हालमें सुना है कि एकके-बाद-एक जहाज इन निर्वासितोंको ले जाने से इनकार करता जाता है। मेरा विश्वास है कि यह खबर सच है। इसका इलाज निस्सन्देह भारतके जहाजी व्यापारियोंके हाथमें है। यदि वे विभिन्न जहाजी कम्पनियोंको बतला दें कि अगर वे ट्रान्सवाल-सरकारकी घृणित चालोंमें शामिल हुए तो भारतीय यात्री उनके जहाजोंसे यात्रा नहीं करेंगे। तब इसमें शक नहीं है कि ये जहाजी कम्पनियाँ गैरकानूनी रूपसे निर्वासित भारतीयोंको ले जानेसे इनकार कर देंगी । {{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन,}} ९-४-१९१० (2 १. देखिए जोहानिसबर्गकी चिट्ठी”, पृष्ठ २२८ । Gandhi Heritage Portal