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१३८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सोमवार [ अप्रैल ४, १९१० ]

और गिरफ्तारियाँ

श्री डेविड सॉलोमन, श्री मूनसामी चेलन, श्री मूनसामी पॉल और श्री जॉन एडवर्ड के साथ धोबीसामी और श्री चिल्लिया भी गिरफ्तार किये गये थे । इन सभीको निर्वासित करनेकी आज्ञा दी गई है। इनके अलावा २ अप्रैल शनिवारको श्री गोविन्दसामी नारण पिल्ले, श्री एलारी मूनसामी, श्री मदुराई मुतू, श्री कनाबथे नारण पिल्ले, श्री मूनसामी, श्री के० चिन्ना- सामी और श्री गोविन्दसामी गिरफ्तार किये गये। इनमें से दो तो किशोर ही हैं । ये सभी सिगार बनानेवाले एक गोरेके यहाँ काम करते थे । मैंने जो सुना है उसके मुताबिक किसी भारतीयने ही इन्हें गिरफ्तार कराया है । वे स्वयं तो गिरफ्तारीके लिए तैयार थे ही; किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि किसी भारतीयको उन्हें गिरफ्तार करानेका साहस कैसे हुआ । यदि गिरफ्तारियोंका प्रबन्ध संघर्षको शक्ति पहुँचानेके लिए कराया गया होता तो भी बात अलग होती । ये गिरफ्तारियाँ तो अदावतसे कराई गई हैं। फिर भी उन भारतीयोंके इस कामसे संघर्षको बल ही मिला है। इन लोगों के बारेमें बहुत कुछ जानने योग्य है। इनमें से ज्यादातर लोगोंके पास स्वेच्छया लिये गये पंजीयन प्रमाणपत्र थे। इन्हें वे जला चुके हैं। इन व्यक्तियोंमें से चार 'ट्रोकाडीरो' होटलमें वेटर थे। उन्होंने अपनी नौकरियाँ छोड़ दी हैं । अन्तिम सात कई वर्षोंसे सिगारके कारखाने में काम करते थे। उन्होंने भी अपनी नौकरियाँ छोड़ दी हैं । इनमें से कुछ आठसे दस पौंड प्रतिमास तक कमाते थे । ऐसे आत्म-बलिदानके उदाहरण शायद ही मिल सकेंगे । ध्यान देनेकी बात है कि ये सभी लोग तमिल हैं और बिलकुल बेधड़क होकर [जेल ] चले जा रहे हैं। किसीकी माँ है, किसीके बाल-बच्चे हैं। हमारे बीच भारतके ऐसे सपूतोंके रहते संघर्षका एक ही परिणाम हो सकता है। इसमें सन्देह नहीं कि तमिल समाजका यह बलिदान दुनिया के इतिहास में सदा अंकित रहेगा। मेरी बड़ी इच्छा है कि अन्य भारतीय इस त्यागमें कुछ तो हाथ बँटाएँ ।

रेलगाड़ियोंमें ज्यादती

श्री इस्माइल आदम प्रिटोरियाके व्यापारी हैं। वे पार्क स्टेशनसे पहले दर्जेमें प्रिटोरिया जा रहे थे । वे चलती गाड़ीसे नीचे उतार दिये गये । इस विषयमें श्री काछलियाने प्रबन्धक ( मैनेजर ) के नाम जो पत्र लिखा उसका अनुवाद नीचे दिया जा रहा है : १. देखिए “ पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धकको ”, पृष्ठ २१४-१५ । Gandhi Heritage Porta