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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

एशियाइयोंके होटल शामके छः बजे बन्द करने होंगे। मुझे इस विषमताके विरुद्ध कुछ अधिक करना सम्भव नहीं दिखाई देता; फिर भी संघने इसके विरुद्ध उपनिवेश- सचिवको पत्र भेजा है।

कानमियोंमें कलह

कानमिया' भाई आपसमें दिल खोलकर लड़े। उन्होंने सरेआम सड़कपर मार-पीट की। उसे देखनेके लिए बहुत-से गोरे इकट्ठे हो गये थे । करीब तीन आदमी बहुत जख्मी हुए। लड़नेवालोंकी लाज तो गई ही, कुछ हद तक भारतीय समाजकी भी गई। लड़ाईसे दोनोंमें से किसीको लाभ नहीं हुआ। लाभ केवल सरकार और वकीलोंको होगा। दोनों पक्षोंने वकील किये हैं। वे कहते हैं, पैसा पानीकी तरह खर्च करेंगे ।

अखबारोंमें कहा गया कि यह लड़ाई सत्याग्रहियों और असत्याग्रहियों की है । इसलिए श्री काछलियाने अखबारोंको एक पत्र लिखा है कि इस मारपीटसे सत्याग्रह संघर्षका कोई सम्बन्ध नहीं है ।

मैं कानमिया भाइयोंसे दो शब्द कहना चाहता हूँ। वे लड़नेमें बहादुर हैं, यह मैं जानता हूँ और सब लोग जानते हैं। परन्तु यदि वे यह मानते हों कि इस प्रकार मारपीट करनेसे उनका नाम होगा तो यह उनकी बड़ी भूल है। झगड़ेका कारण कुछ भी हो । दोष किस पक्षका है, इसका विचार मैं नहीं करता। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि मार- पीट करनेसे उनमें से किसीको भी कोई लाभ नहीं हुआ। फिर भी, जिनको अपने शरीरबलका गर्व हो और जो उसका उपयोग करना ही चाहते हों, उनको उसका उपयोग वैर निकालनेके निमित्त नहीं, बल्कि दूसरोंकी रक्षाके निमित्त करना चाहिए ।

फिर, जो लड़ना चाहते हों उनको लड़कर ही मरना या जीतना उचित है। मारपीट करके अदालतमें जाना तो दोहरी दरिद्रता मानी जायेगी। मारना कायरताका काम है और अदालत में जाना उससे भी बुरा काम । मारनेवाला व्यक्ति जब अदा- लतमें जाता है तब वह किसी भी कामका नहीं बचता।

इंग्लैंडके सिवा यूरोपके दूसरे भागोंमें द्वन्द्व युद्धकी प्रथा अवतक है। उसकी विधि यह है कि विवादी पक्ष अपनी गर्वोक्ति सत्य सिद्ध करनेके लिए आपसमें एक-दूसरेसे विधिवत लड़ते हैं और उस लड़ाईमें जो हार जाता है उसकी गर्योक्ति असत्य मानी जाती है। ये लोग अदालतमें जा ही नहीं सकते। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि जो लोग मारपीटमें विश्वास करते हैं उनकी दृष्टिसे सोचें तो उक्त प्रथा अच्छी मानी जा सकती है।

किन्तु मारनेसे मरना भला, जो यह बात जानते हैं वे सब कुछ जानते हैं और उन्होंने सब-कुछ जीत लिया है। यह भारतीयोंकी विशेष पद्धति है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको”, पृष्ठ २३४ । २. कानम (मध्य गुजरात) के मुसलमान । ३. देखिए "पत्र : अखबारोंको”, पृष्ठ २२६-२७ ।