पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/२७४

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१४४. ट्रान्सवालकी टिप्पणियाँ

मंगलवार [ अप्रैल १२, १९१०]

नीचे लिखे व्यक्ति शनिवार ९ अप्रैलको डेलागोआ-बेको भेज दिये गये हैं : सर्वश्री वीरा पिल्ले, एस० माणिकम्, एन० जी० पिल्ले, एन० के० पिल्ले, गोविन्द चेट्टी, जो चिनानन, मुतू मुनियन, डेविड सॉलोमन, मूनुसामी पॉल, मूनुसामी चेलन, नूरी सूमू अप्पन, टॉमी गोविन्दसामी, लेकी, अभी नायडू, जॉन एडवर्ड, टी० ए० एस० आचारी, सी० नारायण- सामी, आर० सी० पीटर, मॉर्गन, चेला पाथेर, आर० मूनुसामी, जॉन लाज़ारस, डेविड मेरियन, फ्रांसिस बेकर, अल्बर्ट बेकर, के० चिन्नासामी पिल्ले, एच० वी० जैक्सन, एम० जिम्मी, ई० एम० डेविड, एल० गोविन्दसामी, डी० अरुमुगम्, विली लाज़ारस, एस० मूनुसामी, वीरासामी नायडू, गुलाम मुहम्मद, जैराम वल्लभ, नूर अली और रतनजी रणछोड़। इनमें से अन्तिम चार व्यक्तियोंके सम्बन्धमें मुझे यह निश्चय नहीं है कि वे सत्याग्रही हैं। लेकिन सम्भवतः प्रिटोरियाकी पुलिस-बारकोंमें इन लोगोंके प्रतिष्ठित दलसे सम्पर्क होनेके बाद वे सत्याग्रही हो गये हों।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१४५. पत्र: जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]
अप्रैल १२, १९१०

महोदय,

भारतीय सत्याग्रहियोंके साथ जेलमें होनेवाले आम सलूकके बारेमें, आपका इस मासकी ९ तारीखका पत्र संख्या १४५९/१०/२४७ प्राप्त हुआ। मेरे संघका निवेदन है कि एशियाइयोंके विचारसे डीपक्लूफकी जेलका चुना जाना यह बताता है कि सरकारका मंशा सत्याग्रहियोंके साथ मजिस्ट्रेटों द्वारा उनको दिये गये दण्डसे कुछ अधिक सख्ती बरतना है, क्योंकि केवल वहीं कैदियोंको तीन महीनेमें सिर्फ एक बार मुलाकात और पत्र-व्यवहारकी इजाजत मिल पाती है।

१. देखिए पिछला शीर्षक । २. इस पत्रका मसविदा सम्भवतः गांधीजीने तैयार किया था, और यह ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष श्री ई० आई० अस्वातके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था । Gandhi Heritage Portal