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१४७. पत्र: उपनिवेश-सचिवको

[ जोहानिसवर्ग ]
अप्रैल १२, १९१०

महोदय,

दूकानोंके खुलने और बन्द होनेके समयके सम्बन्धमें सरकारी 'गजट' में प्रकाशित विधेयकके सिलसिलेमें मेरा संघ यूरोपीय उपाहारगृहों और एशियाई भोजनालयोंके बन्द होनेके समयके निर्धारणमें किये गये भेदभावका नम्रतापूर्वक विरोध करता है। यदि सरकार एशियाई भोजनालयोंके मालिकोंको भी वैसी विशेष सुविधाएँ दे दे तो उससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता। इसलिए मेरे संघको भरोसा है कि यह भेदभाव दूर कर दिया जायेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१४८. पत्र : महान्यायवादीको

[ जोहानिसबर्ग ]
अप्रैल १४, १९१०

महोदय,

सर्वश्री एम० ए० करोदिया और ए० ए० करोदिया कुछ समय पूर्व गिरफ्तार किये गये थे। इनमें से पहले व्यक्तिपर धोखा देकर पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त करनेका आरोप था और दूसरेपर झूठा हलफनामा देनेका । दो मोहलतोंके बाद दोनों मामले सरकारकी ओरसे, कोई सबूत पेश किये बगैर, उठा लिये गये । मेसर्स करोदिया ब्रदर्स जोहानिसबर्गमें प्रसिद्ध ब्रिटिश भारतीय व्यापारी हैं। आजतक वे यह नहीं जानते कि किस सबूतके आधारपर उनपर ये आरोप लगाये गये थे। उनकी गिरफ्तारीसे भारतीय समाजको बहुत अधिक अचम्भा हुआ और स्वयं उनको भी कुछ कम कष्ट नहीं पहुँचा। वे अपने विरुद्ध लगाये गये आरोपोंका सामना करनेके लिए पूरे तौरसे तैयार थे और अब भी हैं। एशियाई विभाग (डिपार्टमेंट) इस तथ्यसे भलीभाँति परिचित है कि वे प्रतिष्ठित व्यापारी हैं। उन्हें लगता है कि यदि वे अपने विरुद्ध की गई इस १. इस पत्रका मसविदा अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया था और वह ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष ई० आई० अस्वातके हस्ताक्षरसे भेजा गया था । २. देखिए " जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २३०-३१ ।