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तमिल वलिदान

कार्रवाईको, आरोप वापस लिये जानेके बाद समाप्त हो जाने दें तो वे और उनके साथी व्यापारी भविष्यमें ऐसी गिरफ्तारियोंसे अपने आपको सुरक्षित नहीं मान सकेंगे। ऐसी परिस्थितिमें उनकी दरख्वास्त है कि जिन लोगोंकी गवाहीपर उनके विरुद्ध वारंट निकालनेकी मंजूरी दी गई थी, उन लोगोंके नाम और हलफनामे उनके हवाले कर दिये जायें। उनकी विनम्र इच्छा यह भी है कि भविष्यमें सरकार प्रतिष्ठित भारतीयोंकी गिरफ्तारीके वारंट प्राप्त करने में अपने विवेकका न्याययुक्त ढंगसे उपयोग करेगी ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९१०

१४९. एल० डब्ल्यू० रिचको लिखे गये पत्रका सारांश

[ १४ अप्रैल, १९१० के बाद ]

इस मामले के बारेमें श्री रिच हमें सूचित करते हैं कि उन्हें श्री गांधोका एक पत्र मिला है। इसमें उन्होंने इन लोगोंको भारत भेजनेका कारण यह बताया है कि उन्होंने अपनी शिनाख्तके लिए अपने प्रमाणपत्रोंपर, जो पंजीयक [रजिस्ट्रार ] को दिये जा चुके हैं, अपनी अँगुलियोंके निशान देने से इनकार कर दिया था। उनका कहना है कि यह बहाना बेबुनियाद है, क्योंकि इनमें से अधिकतर लोग सत्याग्रहियोंके रूपमें जेल जा चुके हैं और फलतः अधिकारी उन्हें जानते हैं। वे यह भी कहते हैं कि अँगुलियोंके निशान देने से इनकार करनेके कारण निर्वासित करना गैर-कानूनी है, क्योंकि इस अपराधका विहित दण्ड गिरफ्तारी है, निर्वासन नहीं। वे इस समाचारको पुष्टि करते हैं कि निर्वासित लोगोंमें बहुत-से दक्षिण आफ्रिकाके अधिवासी थे ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडिया, १३-५-१९१०

१५०. तमिल बलिदान

तमिल संघके पचपन वर्षीय अध्यक्ष श्री चेट्टियारकी गिरफ्तारीने, ट्रान्सवालके तमिल समाजके शानदार कामको, जिसे वह अपनी ओरसे नहीं बल्कि समस्त दक्षिण आफ्रिकी भारतीय आबादीकी ओरसे कर रहा है, पूरे उत्कर्षपर पहुँचा दिया है। इस समय लगभग सौ तमिल हिरासतमें हैं । ये या तो डीपक्लूफकी जेलमें सजाएँ भोग रहे हैं, या अपने निर्वासनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो कई कारणोंसे कैदसे भी बुरा है । ट्रान्सवालमें शायद ही कोई तमिल बचा हो जिसने सत्याग्रह संग्राममें सजा न पाई

१. यहाँ उन ५९ भारतीयोंका उल्लेख है जो १४-४-१९१०को निर्वासित किये गये थे; देखिए “ जोहानिसबर्गकी चिट्ठी”, पृष्ठ २३९-४० । २. देखिए “ शाबाश, श्री चेट्टियार", पृष्ठ २३८ और “पत्रः जेल-निदेशकको”, पृष्ठ २४० ।