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१५२. गो० कृ० गोखलेकी सेवाएँ

माननीय प्रोफेसर गोखलेने जो सेवा की है उसे आँका नहीं जा सकता । यों तो उन्होंने सदैव हमारी मदद की है, किन्तु विधान परिषद (लेजिस्लेटिव कौंसिल) में उन्होंने जो काम किया वह बहुत मूल्यवान है । गिरमिट बन्द करनेके बारेमें उन्होंने जो प्रस्ताव पेश किया और उसपर वे जो-कुछ बोले वह पढ़ने योग्य है। उनके भाषणसे समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी दशाका चित्र सामने आ जाता है। उनके भाषणपर अंग्रेजी अखबारोंने भी बड़ी अच्छी टिप्पणियाँ दी हैं। हम देखते हैं कि उन्होंने यह माँग की है कि गिरमिट प्रथा [ अपने आपमें ] खराब है, इसलिए उसे बन्द कर दिया जाना चाहिए। वास्तविक रूपमें देखें तो यह ठीक ही हुआ है ।

प्रोफेसर गोखलेके बाद अन्य भारतीय सदस्योंके भाषण हुए। आगेके अंकोंमें हमें इन सभीके अनुवाद देने हैं। इनसे सभी पाठक यह देख सकेंगे कि ट्रान्सवालके संघर्ष- का असर कितना गहरा हुआ है।

इस कामके लिए निस्सन्देह प्रोफेसर गोखलेके प्रति आभार मानना चाहिए। हम आशा करते हैं कि उक्त महानुभावपर सभी उपनिवेशोंकी सार्वजनिक संस्थाएँ आभार- प्रदर्शनके प्रस्तावोंकी वर्षा करेंगी।

समाचारपत्रोंसे ज्ञात होता है कि इस महान कामका यश सारा भारत पोलकको देता है। जब सभा विसर्जित हुई तब लोगोंने पोलकको बधाइयाँ दीं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१५३. ट्रान्सवालकी संसद

ट्रान्सवालकी संसद (पार्लियामेंट) कुछ करेगी, यह आशा सभी भारतीयोंको थी और हमें भी थी; फिर भी अब जान पड़ता है कि इस संसदमें लड़ाईका कोई फैसला नहीं होगा। फैसला कैसे हो ? भारतीय समाजकी शक्ति कम हो जानेसे ट्रान्सवाल- सरकारको लोभ हो गया। उसने सोचा कि कुछ और ठहर जायें तो हर भारतीय थककर बैठ जायेगा। इसी दृष्टिसे संसदमें कुछ नहीं आ रहा है; ऐसी हमारी निश्चित धारणा है। इससे हम निराश नहीं होते। हम धोखा देकर कुछ लेना नहीं चाहते। हम अपने

१ और २.२५-२-१९१० को; देखिए “वाइसरॉयकी परिषदमें बहस", इंडियन ओपिनियन,९-४-१९१० | ३. ये यहाँ नहीं दिये गये हैं; दादाभाई और मुहम्मद अली जिन्ना आदिके अंग्रेजी भाषणोंके अनुवादके लिए देखिए "वाइसरॉयकी परिषदमें बहस, इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१० । Gandhi Heritage Portal