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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बलके भरोसेपर जूझ रहे हैं। कुछ वीर तो मृत्युपर्यंत मैदानमें रहेंगे, इसलिए भारतीय जीते हुए ही हैं। उस जीतको हम कब मनायेंगे यह इस बातपर निर्भर है कि हममें से कितने जोर लगाते हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१५४. शाबाश, चेट्टियार !

जो भारतीय हार मानकर बैठ गये हैं श्री चेट्टियारका किस्सा सुनकर उन्हें भी रोमांच हुए बिना नहीं रह सकता। श्री चेट्टियार बुजुर्ग हैं। तमिल समाजके मुखिया हैं। वे दो बार तो जेल भोग आये हैं। उनका पुत्र अनेक बार जेल हो आया है। अब उसे निर्वासित करके भारत भेज दिया गया है। श्री चेट्टियारने बाहर रहकर बहुत काम किया है। पकड़े जानेका उन्होंने भय नहीं माना; अब वे गिरफ्तार हो गये हैं। उन्होंने अपने रोगको नहीं गिना। वे अपना पैसा खो चुके हैं। उनके रोम-रोममें यह भावना भरी है कि मानके लिए, देशके लिए प्राण दे दूंगा पर आत्मसमर्पण नहीं करूंगा । वे मार्शल स्क्वेयरमें हँसते-हँसते विराजमान हैं। हम आशा करते हैं कि बूढ़े-जवान, छोटे-बड़े सभी भारतीय श्री चेट्टियारका उत्साह देखकर उत्साहित होंगे और श्री चेट्टियारके नामपर अभिमान करेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१५५. क्या लॉर्ड ग्लैडस्टनको मानपत्र दें ?

दक्षिण आफ्रिकाके गवर्नर जनरल लॉर्ड ग्लैडस्टन कुछ दिनोंमें आ जायेंगे । उनको मानपत्र दिया जाये या नहीं, यह प्रश्न उपनिवेशोंमें प्रत्येक भारतीयके मनमें घूम रहा होगा ।

अपनी अवस्थाके सम्बन्धमें सब दृष्टियोंसे विचार करनेपर यह प्रतीत होता है। कि लॉर्ड ग्लैडस्टनको मानपत्र देना हम लोगोंके लिए उचित नहीं है। जिस देशमें हमको अपमानित किया जाता है, उस देशमें हम किसको मानपत्र दें? जो सरकार हमारे साथ न्याय नहीं करती उसके प्रतिनिधिको मानपत्र देना कैसा ? यह एक दृष्टि- कोण है ।

दूसरा दृष्टिकोण यह है कि इस देशमें अंग्रेजोंकी पताका फहराती है, इसलिए हम अपने अधिकारोंकी माँग करनेमें झिझकते नहीं। हम इस देशके लोगोंके साथ मिल-जुलकर रहना चाहते हैं। हम अपने सम्मानकी रक्षा करना चाहते हैं। अपने Portal Gandhi Heritage