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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सम्मानकी रक्षाका इच्छुक सदा दूसरोंका सम्मान करता है। जिसकी दृष्टिमें सम्मानका मूल्य है वह दूसरोंसे ओछेपनका व्यवहार कदापि न करेगा। सम्राट्के प्रतिनिधिका सम्मान करनेसे हम सम्मानित होंगे। यह दूसरी दृष्टि है। इस दृष्टिसे हम लॉर्ड ग्लैंड- स्टनको मानपत्र दें तो इसमें दोष नहीं दिखाई देता। हम उनको झूठी प्रशंसाके रूपमें नहीं, बल्कि केवल शिष्टताके रूपमें मानपत्र दें। यह उचित माना जा सकता है । मानपत्रके स्वरूपपर उसका औचित्य या अनौचित्य निर्भर है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९१०

१५६. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

सोमवार [ अप्रैल १८, १९१०]

रिहाइयाँ

श्री पेरूमल और श्री गोविन्दसामी छः सप्ताहकी सजा पूरी होनेपर गत सप्ताह रिहा कर दिये गये ।

फकीरा और अन्य लोग

बहादुर श्री फकीरा गत शनिवारको फिर गिरफ्तारकर लिये गये । उनका मुकदमा आज पेश हुआ । उनको भारत भेजनेकी आज्ञा दी गई है। उन्होंने भारतसे तुरन्त लौटनेका निश्चय किया है।

आज श्री नारणसामी और श्री किस्टप्पा गिरफ्तार कर लिये गये और श्री दयाल- रामजी, श्री कासिम इब्राहीम, श्री वली आदम, श्री ईसा आदम तथा श्री ऊधव भीखाको देश-निकालेकी आज्ञा दी गई। इनमें से अन्तिम पाँच व्यक्ति सत्याग्रही नहीं हैं, किन्तु वे लाचारीसे गिरफ्तार हुए हैं और लाचारीसे ही देश जा रहे हैं ।

चेट्टियार

श्री चेट्टियार, श्री मॉर्गन तथा श्री फ्रांसिसको १५ तारीखको तीन-तीन मासकी कैदकी सजा दी गई है।

शेलत वापस

श्री शेलत ट्रान्सवालमें फिरसे दाखिल हो गये हैं और गिरफ्तार कर लिये गये हैं। उनका मुकदमा मंगलवारको पेश होगा ।

५९ को देश-निकाला

भारतीयोंका भारतको भेजा जाना देश-निकाला मानना पड़े, यह कितने दुःखकी बात है ? फिर भी इस मासकी १४ तारीखको जो ५९ भारतीय 'उमलोटी' से भेजे गये, उन्हें निर्वासित किया गया, यह कहे बिना काम नहीं चलता। ऐसे बहादुर लोगोंको अबतक Gandhi Heritage Portal