एक भी जहाज भारत नहीं ले गया था। इन भारतीयोंमें से, जो अभी गये हैं, कुछ नवयुवक इसी देशमें जन्मे हैं, कुछ बचपनसे ही यहाँके निवासी हैं और कुछके परिवार यहाँ ही रहते हैं। फिर कुछ नेटालके निवासी हैं या पढ़े हुए होनेके कारण नेटाल जानेके अधिकारी हैं। इन सभीको भारत भेज दिया गया है। यह अत्याचारकी परा- काष्ठा हो गई है। इन भारतीयों में से बहुत से स्वेच्छासे पंजीकृत हो चुके हैं।
मुझेविश्वास है कि ये कुछ दिनोंमें वापस लौट आयेंगे ।
इनमें से कुछ डेलागोआ-बेमें बीमार पड़ गये थे। श्री सामी क्रिस्टरको अस्पताल भेजना पड़ा था। फिर भी एक भी भारतीयने हार नहीं मानी, यह हमारे सौभाग्यका लक्षण है।
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९१०
१५७. पत्र : जेल-निदेशकको
[ जोहानिसबर्ग ]
अप्रैल १९, १९१०
श्री वी० ए० चेट्टियार भारतीय समाजके एक वयोवृद्ध सदस्य, और तमिल कल्याण संघ ( बेनीफिट सोसाइटी ) के अध्यक्ष हैं। उनको सत्याग्रहीके रूपमें तीसरी बार कैदकी सज़ा दी गई है। मेरे संघका खयाल है कि इस बार उनको फोक्सरस्टमें कठिन श्रमके साथ कैदकी सजा मिली है। मैं आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि श्री चेट्टियार एक शरीर-व्याधिसे पीड़ित हैं और इसीलिए जोहानिसबर्ग में मजिस्ट्रेटने उनको मामूली श्रम ही दिया था। मेरा संघ नहीं जानता कि फोक्सरस्टमें उनके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है; लेकिन अन्तमें वे डीपक्लूफ भेजे जायेंगे और उनको जोहानिसबर्गसे डीपक्लूफ तक की दूरी शायद पैदल चलकर तय करनी पड़ेगी। चूंकि उनमें इतना सामर्थ्य नहीं है, इसलिए मैं आपका ध्यान ऊपर दी गई जानकारीकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ और आशा करता हूँ कि इस सम्बन्धमें उचित सावधानी बरती जायेगी जिससे श्री चेट्टियारके स्वास्थ्यपर बुरा प्रभाव न पड़े। मेरे संघको मिली सूचनाके अनुसार, श्री चेट्टियार अभीतक फोक्सरस्ट जेलमें हैं ।
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९१०
१. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था और पत्र ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरसे भेजा गया था ।