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अखबारवालोंका कर्तव्य

इससे एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होता है। यदि वह सिद्धान्त, जो हमने बताया, ठीक हो तो बिना सोचे-समझे कोई क्षोभजनक लेख छाप देनेपर क्षमा न माँगनेसे पत्रकी अन्य सेवाएँ भी रुक जायेंगी और जातिको उसका लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए हम यह नहीं कहते कि उक्त सिद्धान्त उस लेखपर भी लागू किया जाना चाहिए जो साभिप्राय नहीं छापा गया है; बल्कि उसे अच्छी तरह सोच-समझ कर छापे गये लेखके सम्बन्धमें लागू मानना चाहिए। यदि ऐसे लेखके कारण संकट आ जाये तो अखबारको बन्द कर देनेमें अधिक लोक-सेवा होती है, ऐसी हमारी मान्यता है । उस समय समस्त धन-सम्पति जब्त होने और भिखारी बननेका अवसर आ जायेगा, ऐसा तर्क करना काम नहीं दे सकता। ऐसा अवसर आयेगा, इसीलिए हमने आरम्भ में बताया कि लोक-सेवा करनेवाले समाचारपत्रके सम्पादकको मौतका डर छोड़कर चलना चाहिए ।

दो-एक प्रत्यक्ष उदाहरण लें। मान लें कि कहीं कन्या-विक्रयकी नृशंस प्रथा दिखाई देती है। वहाँ किसी सुधारकने अखबार निकाला और कन्या-विक्रय के विरुद्ध कड़े लेख लिखे। उनसे कन्या-विक्रय करनेवाले चिढ़ गये एवं उन्होंने सुधारकको क्षमा न माँगनेपर जाति-बिरादरीसे अलग करनेका निश्चय किया । अब हम तो यह अनुभव करते हैं कि सुधारकको बर्बाद होने और जाति-बहिष्कृत किये जानेपर भी कन्या-विक्रयके विरुद्ध लिखते जाना चाहिए और अपने पास पैसा न रहनेपर अखबार बन्द कर देना चाहिए; किन्तु माफी तो कदापि न माँगनी चाहिए। ऐसा करनेपर ही कन्या-विक्रयकी रूढ़िके उन्मूलनका आधार मजबूत होगा ।

अब दूसरा उदाहरण लें। कल्पना कीजिए कि सरकारने घोर अन्याय करके गरीबोंके घर लूट लिये। वहाँ कोई सुधारक पत्र है। उसमें ऐसे अन्यायके विरुद्ध लेख लिखा गया और लोगोंको सरकारी कानूनकी अवज्ञा करनेका परामर्श दिया गया । उससे सरकार नाराज हो गई और उसने धमकी दी कि क्षमा न माँगनेपर सुधारककी सम्पति जब्त की जायेगी। तब क्या सुधारकको माफी माँग लेनी चाहिए? हमें लगता है कि इसका उत्तर भी वही है । सम्पति जब्त हो जाने दी जाये और समाचारपत्रका प्रकाशन बन्द कर दिया जाये, परन्तु माफी न माँगी जाये। ऐसा करनेपर लोग सोचेंगे कि सुधारकने उनके हितके लिए सब-कुछ गँवा दिया। तब वे अपने हितके लिए कानूनका विरोध क्यों नहीं करेंगे? यदि सुधारक माफी माँगे तो अनुकूल प्रभाव पड़नेके बजाय विपरीत पड़ेगा। लोग कहेंगे कि इस सुधारकको उनके घरोंके राख हो जानेकी कोई परवाह नहीं है। वह तो दूर बैठा बेकार चिल्लाता है। जब स्वयं उसके ऊपर संकट आया तो वह झुककर रह गया । तब लोग यह भी सोचेंगे कि मनमार कर बैठ जायें और 'जो होता हो सो होने दें', यों वे और भी दुर्बल हो जायेंगे । इसलिए स्पष्ट है कि उक्त उदाहरण में सुधारक समाचारपत्रको बन्द कर देगा तभी पूरी सेवा करेगा ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९१०

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