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१६०. जो करेगा सो भरेगा

हम सभी इस कहावतको जानते हैं; किन्तु हममें से ज्यादातर लोग काम उलटा करते हैं और अच्छे उलटे फलकी इच्छा करते हैं। हम घर बैठे रहकर लक्ष्मीकी कामना करते हैं। हदसे ज्यादा खाकर इच्छा करते हैं कि बदहज़मी न हो। विना मेहनतके इच्छापूर्तिकी आशा करते हैं। नरक जानेके काम करके स्वर्गकी हविस रखते हैं। देशके अखबारोंमें भंगी आदि वर्णोंकी दुर्दशाकी तसवीर देखनेमें आती है। जिनकी गिनती सभ्य लोगों में है ऐसे भारतीय भी अबतक उनका तिरस्कार करते हैं। बड़ौदाके महाराजाने उन्हें सार्वजनिक पाठशालाओंमें दाखिल करनेका कानून बनाया है। जो अपनी नती ऊँचे वर्णोंमें कराना चाहते हैं ऐसे अनेक भारतीयोंने इसपर आपत्ति उठाई है और वे महाराजाको परेशान कर रहे हैं। हम एक जातिके रूपमें ऐसा व्यवहार करते हैं और फिर भी दक्षिण आफ्रिकामें हमारे साथ जो व्यवहार होता है उसे फलरूप में स्वीकार नहीं करना चाहते। यह कैसे हो सकता है? मद्रासके एक भारतीय जजने अभी-अभी कड़ी टीका करते हुए कहा है कि हम दक्षिण आफ्रिकाके कष्टोंके बारेमें शिकायत करते हैं सो तो ठीक है, किन्तु हम अपने ही लोगोंको तुच्छ मानते हैं। उनके स्पर्श-मात्रसे अपवित्र हो जाते हैं, उन्हें दूर-दूर रखते हैं और उनको कुचलते हैं; भला हम इस स्थितिको सुधारनेके उपाय क्यों नहीं करते ? "दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंपर प्रहार करनेके बजाय हम अपनी ही पीठपर चाबुकोंकी वर्षा क्यों नहीं करते? "

हमारे पास इन बातोंका जवाब नहीं है। कुछ बातें हमारे पक्षमें कही जा सकती हैं; किन्तु यहाँ उनपर विचार करनेकी जरूरत नहीं है।

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको अपनी दशासे शिक्षा लेनी ही चाहिए। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि वे देश लौटनेपर भंगी आदिका तिरस्कार कदापि नहीं करेंगे ।

जो महाराजा गायकवाड़को परेशान कर रहे हैं, वे ही यदि ऊंचे वर्णके भारतीयोंके नमूने हैं तो एक ऐसा समय भी आयेगा जब भंगियोंके कुलमें पैदा होना इज्जतकी बात गिनी जायेगी। मनुष्य अपने मदमें और स्वार्थमें किस हद तक गिर जाता है, हिन्दुओंकी भंगी आदि जातियोंकी ओर तिरस्कारकी भावना इसका उदाहरण है। हमारी कामना है कि हरेक समझदार और सुशील हिन्दू ऐसी प्रार्थना करे कि, 'हे परमेश्वर, ऐसे

१. के० श्रीनिवास राव, सव-जन टुटीकोरिनकी एक सभा अध्यक्षपदसे भाषण देते हुए; आपने यह कहा था । देखिए " द बीम इन इंडियाज़ आई", इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९१० ।

२. भंगियोंके बच्चोंको सरकारी शालाओंमें दाखिल करनेकी उनकी आशाके बारेमें, देखिए "रेट्रिब्यूशन " (सजा), इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९१० । Gandhi Heritage Portal