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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खूराकमें किसी भी रद्दोबदलका आदेश तबतक नहीं दिया जाता जबतक कि चिकित्सा- अधिकारी यह न समझे कि उनका वजन जरूरतसे ज्यादा घट गया है। चिकित्सा अधिकारी आम तौरपर यही कहता है कि यदि कैदियोंका वजन थोड़ा-बहुत घट जाये और कुछ चर्बी कम हो जाये तो कोई नुकसान नहीं होता; वह उसे अनावश्यक चर्बी मानता है। वह अक्सर यह कहता रहता है कि कैदी सरकारी राशन खा-खाकर मोटे होते जा रहे हैं। मेरे संघकी विनम्र राय है कि डीपक्लूफ जेलमें इस प्रकारके बर्तावसे भारतीय सत्याग्रहियोंके कष्ट अनावश्यक रूपसे बढ़ाये जा रहे हैं। ७२ एशियाई कैदियोंमें से १८ की खूराक बढ़ानी पड़ी। इसी एक तथ्यसे प्रकट हो जाता है कि मौजूदा खुराक, किस्म और मिकदार, दोनों ही दृष्टिसे अत्यन्त अपर्याप्त है। जाड़ेकी बात सोचकर, मेरे संघको इन कैदियोंके स्वास्थ्यके बारेमें और अधिक चिन्ता हो जाती है, क्योंकि उनको भोजनके साथ साधारण चिकनाई लेनेकी आदत है और उसके न मिलनेपर उनके स्वास्थ्यपर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ेगा।

रिहा होकर आये लोगोंकी एक यह भी शिकायत है कि पिछले जाड़ोंमें तो उनको अन्य कपड़ोंके साथ एक मोटी-सी कमीज भी दी गई थी, लेकिन इस बार अभी- तक उसकी मंजूरी नहीं दी गई है और कैदियोंको अब उसकी कमी खलने लगी है। मेरे संघको नहीं मालूम कि यह परिवर्तन सभी जेलोंमें किया गया है या नहीं, लेकिन यदि मितव्ययिता या अन्य किसी आधारपर ऐसा परिवर्तन किया भी गया है, तो मेरे संघको आशा है कि भारतीय कैदियोंको, अधिक गर्म देशके वासी होनेके नाते, पूरी बाहोंकी कमीजोंसे वंचित नहीं किया जायेगा, क्योंकि वे उनको हमेशासे मिलती रही हैं। मेरे संघको मालूम हुआ है कि इस शिकायतकी ओर गवर्नर और चिकित्सा अधिकारीका ध्यान आकर्षित किया जा चुका है। लेकिन उन्होंने कैदियोंको वतलाया है कि वह परिवर्तन सरकारने किया है। कैदियोंने कम संख्यामें कम्बल मिलनेकी भी शिकायत की है। डीपक्लूफ जेल लोहेकी नालीदार चादरोंका बनाया गया है और छतोंमें तख्ते नहीं लगाये गये हैं। फिर वह बहुत ऊँचाईपर बना है। इसलिए बहुत ठण्ड रहती है। फोक्सरस्ट जेल तो पत्थरका बना हुआ था, इसलिए वहाँ ब्रिटिश भारतीयोंके लिए तीन कम्बल काफी थे, लेकिन डीपक्लूफ जेलमें कैदियोंका काम उतने कम्बलोंसे नहीं चलता। मेरा संघ आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करना चाहता है कि फोक्सरस्टमें सभी भारतीय कैदियोंको गर्मियों तक में तीन कम्बल और बिछानेकी चटाइयोंके अलावा एक तख्त और एक तकिया दिया जाता था। डीपक्लूफमें कैदियोंको तख्त और तकिया नहीं दिया जाता। सर्वश्री सोराबजी और मेढको हॉटपूर्ट और फोक्सरस्ट दोनों ही जेलोंका अनुभव है। वे बताते हैं कि उन दोनों जगहोंपर जाड़ेके दिनोंमें सभी ब्रिटिश भारतीय कैदियोंको चार-चार कम्बल दिये जाते थे। उनका कहना है कि हॉटपूर्टमें तो आपने ही उस जेलके दौरेके समय सत्याग्रहियोंकी शिकायतपर प्रत्येकको चार-चार कम्बल देनेका आदेश दिया था ।

सर्वश्री सोराबजी और मेढने एक और दुःखद घटनाकी सूचना दी है। डीपक्लूफ जेलमें एक भारतीय कैदीकी अवस्था साठ वर्षसे ऊपर है। उसने चिकित्सा अधिकारीसे Gandhi Heritage Portal