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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी तरह असर नहीं पड़ता। इस पुस्तिकामें मैंने जो विचार व्यक्त किये हैं वे मेरे निजी विचार हैं। यद्यपि ये विचार संघर्षके दौरान परिपक्व हुए हैं, परन्तु संघर्ष से इनका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। और मुझे विश्वास है कि यदि व्यक्तिगत रूपसे मेरे या इस पुस्तिकाके विरुद्ध आपके मनमें कोई प्रतिकूल भाव उत्पन्न हो जाये, तो भी आप संघर्षकी विशेषताओंको इनसे सर्वथा अलग रखकर देख सकेंगे। 'हिन्द स्वराज्य' में मैंने जो विचार व्यक्त किये हैं, वे बहुत सोचने-समझनेके बाद बने हैं। श्री पोलकने उसकी टाइप की हुई प्रति आपको भेज दी है। मैं आपके पास छपी हुई प्रति नहीं भेज रहा हूँ, क्योंकि गुजराती संस्करण जब्त कर लिया गया है और मेरा खयाल है कि यही बात उसके अनुवादपर भी लागू होती है।

यदि आपको टाइप की हुई प्रति देखनेका समय मिला हो तो उसपर मैं आपकी बहुमूल्य राय जानना चाहूँगा। यह पुस्तक यहाँ बड़े पैमानेपर वितरित की गई है। इसकी काफी आलोचना हुई है। आजके 'ट्रान्सवाल लीडर' में एक समालोचना प्रकाशित हुई है जिसपर लेखकका नाम है । उसको मैं श्री पोलकसे आपके पास भेजनेके लिए कह रहा हूँ।

मैं आपके दिसम्बरके पत्रके व्यक्तिगत अंशका उत्तर नहीं दे रहा हूँ। मैंने केवल यह अनुभव किया कि आपके सामने अपने विचार रख देना मेरा कर्तव्य है। मैंने वह कर्तव्य ही पूरा किया है। मैं अब उनपर बहस न करूंगा। यदि मुझे कभी व्यक्तिगत रूपसे आपके दर्शनोंका सौभाग्य प्राप्त हुआ, तो निश्चय ही मैं पुनः उन कतिपय विचारोंकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करूंगा जिनमें मेरा दृढ़ विश्वास है और जो मुझे बिलकुल ठीक लगते हैं। इस बीच मैं आशा करता हूँ कि आप सर्वथा रोग-मुक्त हो गये होंगे और मातृभूमिकी सेवाके लिए दीर्घकाल तक जीवित रहेंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

माननीय प्रोफेसर गोखले
बम्बई

गांधीजीके हस्ताक्षरोंसे युक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३८००) की फोटो-नकलसे ।