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१६९. पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई २, १९१०

महोदय,

जोहानिसबर्गकी ९ जुबली स्ट्रीटके निवासी सर्वश्री एफ० ए० मुल्ला और सुलेमान काको गत २५ अप्रैलको ट्रिचार्ड्ससे अर्मेलो जा रहे थे । गाड़ीपर सवार होनेके बाद उन्हें बैठनेकी जगह नहीं मिल सकी। उनके पास दूसरे दर्जेके टिकट थे। उन्होंने यह बात कन्डक्टरको बताई। उसने कहा कि उनके बैठने की व्यवस्था की जायेगी। एक- एक करके स्टेशन निकलते गये और वे कन्डक्टरसे मिलते रहे, पर गाड़ीके ब्रेटन स्टेशन पहुँचने तक जगहकी व्यवस्था नहीं की गई। ब्रेटन स्टेशनपर श्री मुल्लाने कन्डक्टरसे कहा कि वे उसकी शिकायत करेंगे। इसपर वह बोला कि यदि ऐसी बात है, तब तो श्री मुल्लाको बैठने की जगह दी ही नहीं जायेगी। इतना कहकर वह चला गया । लेकिन श्री मुल्ला और उनके साथी बताये हुए डिब्बेमें जा बैठे। मेरे संघको भरोसा है कि आप इस मामलेकी जाँच करनेकी कृपा करेंगे ।

[अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १४-५-१९१०

१७०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सोमवार [ मई २, १९१० ]

जोज़ेफ रायप्पन

सर्वश्री जोजेफ रायप्पन, डेविड ऐन्ड्र, सेम्युअल जोजेफ तथा घोबी नायना शनि- वारको रिहा किये जानेवाले थे, लेकिन वे इससे एक दिन पहले ही यहाँकी जेलमें ले आये गये । उनको रिहा करनेके बजाय निर्वासित करनेके लिए पुलिसको सौंप दिया गया और फिर वे तुरन्त ही दो दिनके लिए जमानतपर छोड़ दिये गये । रायप्पन और उनके साथियोंका यह पहला ही अनुभव था, फिर भी उन्होंने जेलमें बड़ी हँसी-खुशीसे अपना समय काटा । उनका स्वास्थ्य भी अच्छा है। वे सब तुरन्त वापस आना चाहते हैं । १. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था । १०-१७