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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मंगलवार [ मई ३, १९१०]

क्विनकी अर्जी

श्री क्विनने, जिनको निर्वासित करनेकी आज्ञा दी गई है और जो प्रिटोरिया जेलमें कैद हैं, सर्वोच्च न्यायालयमें इस प्रकारका आवेदन दिया था कि सरकारको उन्हें देश-पार करनेसे पहले हिरासतमें रखनेका अधिकार नहीं है, अतः उन्हें रिहा कर देना चाहिए। इस आवेदनपर विचार किया गया और मुख्य न्यायाधीशने निर्णय दिया कि सरकारने हिरासतका जो समय लिया है वह अधिक नहीं माना जा सकता।' उन्होंने कहा कि हृद-पारकी आज्ञाके सम्बन्धमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता, इसलिए प्रश्न केवल समयका रह जाता है। इस निर्णयका प्रभाव कुछ भी नहीं हुआ है। हम जहाँके तहाँ ही हैं। सत्याग्रही इस प्रकार उच्च न्यायालयमें जानेकी खटपट नहीं कर सकता । फिर भी चूँकि भिन्न-भिन्न प्रकृतियोंके लोग हैं इसलिए उनके निमित्त श्री क्विनको ऐसा आवेदन देना पड़ा था। चीनी लोग इस आवेदनके परिणामसे तनिक भी नहीं घबराये हैं ।

चीनियोंकी सभा

रविवारको चीनियोंकी सभा थी। उसमें श्री रायप्पन, उनके साथी इमाम साहब, श्री कुवाडिया, श्री भीखाजी, श्री सोराबजी, श्री मेढ और श्री गांधी आदि उपस्थित थे। श्री क्विनने सारे संघर्षपर प्रकाश डाला। फिर श्री गांधी, श्री रायप्पन तथा श्री सोराबजी बोले । सभा समाप्त होनेपर श्री रायप्पनके सम्मानमें मेवा और चाय दी गई। श्री रायप्पन जेलमें पूर्ण रूपसे निरामिष-भोजी रहे । उनका कहना है कि उन्हें मांसकी आवश्यकता बिलकुल अनुभव नहीं हुई। श्री रायप्पन और अन्य लोग आज सवेरे प्रिटोरिया ले जाये गये हैं।

श्री शेलत

डीपक्लूफ जेलसे भारतीय कैदियोंने कहलाया है कि सरकार श्री शेलतको मैलेकी बाल्टियाँ उठानेका काम न दे। उनके बदले वे बाल्टियाँ उठानेके लिए तैयार हैं। यह सन्देश भारतीयोंके लिए शोभनीय ही है। इसपर श्री काछलियाने सरकारको पत्र लिखा है कि यदि वह ठीक समझे तो श्री शेलतको कष्ट न दे।

श्री सोढासे मुलाकात

कुमारी श्लेसिन पिछले रविवारको श्री सोढासे मिलनेके लिए डीपक्लूफ गई थीं। श्री सोढा आगामी रविवारको रिहा किये जायेंगे । जेलमें सब स्वस्थ हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-५-१९१०

१. देखिए “सर्वोच्च न्यायालयका मामला ", पृष्ठ २६० ।

२. देखिए अगला शीर्षक Gandhi Heritage Portal