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१७१. पत्र : जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई ३, १९१०

महोदय,

श्री शेलत कुछ समय पहले एक सत्याग्रहीके रूपमें डीपक्लूफ जेलमें सजा काट रहे थे। वे गन्दी बाल्टियाँ ढोनेसे इनकार करनेके कारण लम्बे अर्से तक तनहाईमें रहे । डीपक्लूफ जेलसे रिहा होनेवाले सत्याग्रही, मेरे संघके लिए यह सन्देशा लाये हैं : वहाँके शेष ब्रिटिश भारतीय कैदी इसपर राजी हैं कि श्री शेलतको मैलेकी बाल्टियाँ ढोनेके कामसे छुटकारा दे दिया जाये । ब्राह्मण हैं और उनको यह काम करनेमें धार्मिक आपत्ति है; और बाल्टियाँ ढोनेकी उनकी बारी आनेपर अन्य ब्रिटिश भारतीय कैदी उनकी जगह काम करनेको तैयार हैं। मेरे संघको नहीं मालूम कि श्री शेलतको अब भी वही काम करनेके लिए कहा गया है या नहीं; लेकिन मैं इस मामलेकी ओर आपका ध्यान दिलाना अपना कर्तव्य समझता हूँ जिससे आप डीपक्लूफ जेलके अधिकारियोंको जो हिदायतें देना उचित समझें दे सकें।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-५-१९१०

१७२. तार : शाही परिवारको

[ जोहानिसबर्ग
मई ६, १९१० के बाद ]

ब्रिटिश भारतीय संघ शाही परिवारके प्रति विनम्रतापूर्वक समवेदना प्रकट करता है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १४-५-१९१०

१. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था और यह ब्रिटिश भरातीय संघके अध्यक्ष. श्री अ० मु० काछलिया के हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था । २. देखिए "पत्र : टान्सवालके प्रशासकको ”, पृष्ठ २८६-८७ । ३. इस तारका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था और ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री अ० मु० काछलियाने संबकी ओरसे ट्रान्सवालके डिप्टी-गवर्नरकी मार्फत शाही परिवारको भेजा था । यह एडवर्ड सप्तमकी मृत्युपर, जो ६-५-१९१० को हुई थी, दिया गया था ।