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हमारे प्रकाशन

चुनौती स्वीकार कर ली है। इस साहसके लिए हम बधाई देते हैं । २६१ उनको और उनके मित्रोंको

परन्तु श्री रायप्पनके पत्रसे प्रकट होता है कि ट्रान्सवालकी जेलोंकी हालत अत्यन्त दर्दनाक है। उन्होंने अपने पत्रमें जो कुछ लिखा है उसमें से बहुत सी बातें तो सभी लोग जानते हैं। उन्हें किस तरह पत्थरके ठण्डे फर्शपर नंगे पैर खड़ा रखा गया, खुले गलियारोंमें नंगे बदन रखा गया, हथकड़ियाँ लगाई गईं और जेलके कुछ वार्डरोंने उनके साथ पाशविक बर्ताव किया, यह सारी तफसील एक अत्यन्त लज्जाजनक और दिल दहलानेवाली घटनाकी याद ताजा करती है। यह देखकर हमें प्रसन्नता होती है कि इस व्यवहारसे हिम्मत टूटना तो दूर, उनका स्वराष्ट्रकी सम्मान रक्षाका निश्चय और भी दृढ़ हो गया है। श्री रायप्पन और उनके साथियोंने दक्षिण आफ्रिकाके युवकोंके सामने एक अत्यन्त उज्ज्वल और अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। उन्होंने दिखा दिया है कि सच्चा सुख धन कमानेमें नहीं बल्कि चरित्र निर्माण करनेमें है। हमें निश्चय है कि

श्री रायप्पनका मार्गदर्शन उपनिवेशमें जन्मे भारतीयों और अन्य भारतीयोंमें एक नया उत्साह भर देगा । वे अगर भावी दक्षिण आफ्रिकाके राष्ट्रका निर्माण करना चाहते हैं तो उनके सामने यही एक निश्चित मार्ग है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-५-१९१०

१७५. हमारे प्रकाशन

बम्बई सरकारके २४ मार्चके 'गज़ट' में यह सूचना प्रकाशित की गई है कि इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेसमें छपे 'हिन्द स्वराज्य', 'सर्वोदय',' 'मुस्तफा कामेलपाशाका भाषण " और 'सुकरातका प्रतिवाद' या 'एक सत्यवीरकी कथा सम्राट्की सरकार द्वारा जब्त कर लिये गये हैं; क्योंकि इनमें ऐसी सामग्री है जो "राजद्रोहात्मक घोषित की गई है " ।

'हिन्द स्वराज्य' 'इंडियन होम रूल' के रूपमें हमारे पाठकोंके सामने है। 'सर्वोदय' रस्किनके 'अन टु दिस लास्ट' का गुजराती रूपान्तर है। 'मुस्तफा कामेल- पाशाका भाषण' उस भाषणका गुजराती अनुवाद है जो मिस्रके इस देशभक्तने अपनी मृत्युके पहले काहिराकी एक विराट सभामें दिया था; और 'सुकरातका प्रतिवाद' या ‘एक सत्यवीरकी कथा' प्लेटोकी अमर कृतिका गुजराती रूपान्तर है। यह सत्याग्रहकी

१, २ और ३. इनके मूल अंग्रेजी नाम क्रमशः यूनिवर्सल डाउन, मुस्तफा कामेल पाशाज़'स्पीच और डिफेंस ऑफ़ सॉकेटीज़ या द स्टोरी ऑफ़ ए टू वारिअर है।पहले और तीसरे नम्बरकी पुस्तकोंके लिए देखिए क्रमशः “सर्वोदय", खण्ड ८, पृष्ठ २३२-३४, २४९-५१, २६१-६३, २७२-७४, २८०-८१, २९४-९६, ३१६-१७, ३२९-३१, ३६४-६८ और "एक सत्यवीरकी कथा ", खण्ड ८, पृष्ठ १६५-६७, १७८-८०, १९०-९२, २०५-०७, २१०-१३, २२०-२२ । Gandhi Heritage Portal