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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अच्छाई और असली भावनाको समझानेके लिए प्रकाशित किया गया है। 'हिन्द स्व-राज्य' को छोड़कर शेष सारे प्रकाशन पहले प्रकाशित हो चुके हैं। उनके प्रकाशनकेपीछ यही हेतु रहा है कि उनसे पाठकोंका नैतिक स्तर ऊँचा हो। हमारी रायमें ये किताबें ऐसी हैं जिनको बगैर किसी खतरेके बड़े मजेमें बच्चोंके हाथोंमें भी दिया जा सकता है। परन्तु इन जब्तियोंपर हमें शिकायत करनेका कोई अधिकार नहीं है। भारत सरकारकी इस मनोदशाको हम अस्थायी मानते हैं। आज वह भयग्रस्त है और कुछ-न-कुछ करना चाहती है। जिसमें थोड़ा-बहुत विचार-स्वातन्त्र्य भी हो वह ऐसे साहित्यके प्रचारको रोकना चाहती है। निश्चय ही उत्साहकी यह अधिकता अपने आप ठंडी पड़ जायेगी। जो प्रकाशन वास्तवमें खतरनाक हैं उनका प्रचार इस तरह नहीं रुकेगा । वे अनेक टेढ़े-मेढ़े, उलटे-सीधे तरीकोंसे अपना प्रचारका रास्ता निकाल ही लेंगे और हमें भय है कि इस कारण सरकार ऐसी किताबें जिन वर्गों तक नहीं पहुँचने देना चाहती उनतक वे अवश्य पहुँच जायेंगी और वे उन्हें पढ़ेंगे। इस सूरतमें हम-जैसे सत्याग्रहके कट्टर समर्थकोंके सामने केवल एक ही मार्ग खुला है। दमनका हमपर कोई असर नहीं हो सकता। वह हमारे विचारोंको नहीं बदल सकता । प्रत्येक उचित अवसरपर उनका प्रकाशन अवश्य किया जायेगा, फिर इसके लिए कोई भी व्यक्तिगत कष्ट क्यों न उठाने पड़ें। हिंसात्मक तरीकोंको रोकनेके लिए सरकारकी चिन्तासे हमें सहानुभूति है। इसके लिए हम भी बहुत कुछ करना और योग देना चाहेंगे। परन्तु हम तो इस बीमारीको रोकनेका केवल एक मार्ग जानते हैं और वह यह है कि सत्याग्रहके सही तरीकेका प्रचार किया जाये। दूसरे सव मार्ग, और विशेष रूपसे दमन, आगे चलकर अवश्य ही असफल होंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-५-१९१०

१७६. श्री रायप्पन


सभी लोग स्वीकार करेंगे कि श्री रायप्पन और उनके साथियोंने जातिकी अच्छी सेवा की है। उन्होंने अपनी शिक्षाका अच्छा उपयोग किया है। जेलमें उनका व्यवहार भी सत्याग्रहीके योग्य ही रहा। वे जेलमें जिस सादगीसे रहे वह बहुत ही सराहनीय है। जेलमें श्री डेविड ऐंड्र और श्री सैम्युअल जोजेफने भी उनके साथ बहुत प्रसन्नतापूर्वक अपना समय बिताया ।

अब ये तीनों भारतीय वीर फिर जेलमें पहुँच जायेंगे।' सरकारने उन्हें नया [ सत्याग्रही ] मानकर तुरन्त ही निर्वासित कर दिया है। सरकारको तो यह आशा है

१. देखिए "श्री रायप्पन", पृष्ठ २७८ और “जोजेफ रायप्पन ", पृष्ठ २८० । Gandhi Heritage Heritage Portal