पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तथा उनके कार्योंके बीच, आधुनिक सभ्यता और उसका प्रतिपादन करनेवालोंके बीच भेद नहीं करेंगे, वे इसी निष्कर्षपर पहुँचेंगे । आपकी यह बात मैं स्वीकार करता हूँ कि यदि मैं हिंसात्मक साधनको निरुत्साहित करता हूँ तो इसलिए नहीं कि मैं उसके साध्यको अनुचित मानता हूँ, बल्कि इसलिए कि मैं हिंसात्मक साधनको अनुचित और व्यर्थ समझता हूँ, लेकिन वह भी तब जब साध्यको साधनसे अलग कर सकना सम्भव हो सके जोकि मेरी रायमें सम्भव नहीं है। मेरा विश्वास है कि हिंसात्मक साधनोंसे प्राप्त स्वराज्य मेरे द्वारा सुझाये साधनोंसे प्राप्त किये गये स्वराज्यसे सर्वथा भिन्न ढंगका होगा ।

मैंने आधुनिक सभ्यताकी घोर निन्दा करनेका साहस किया है, क्योंकि मेरी मान्यता है कि इसका प्रेरक तत्व अनिष्टकारी है। यह सिद्ध करना सम्भव है कि इसके कुछ परिणाम अच्छे हैं। लेकिन मैंने इसकी प्रवृत्तिको आचार-नीतिके पैमानेसे जाँचा है। मैं आधुनिक सभ्यताके सामान्य आदर्शों और उन व्यक्तियोंके आदर्शोंमें भेद करता हूँ जो अपने वातावरणसे ऊपर उठ चुके हैं। इस प्रकार मैं ईसाइयत और आधुनिक सभ्यताके बीच भेद करता हूँ। आधुनिक सभ्यताका कार्यक्षेत्र यूरोप तक ही सीमित नहीं है। इसका विनाशक प्रभाव आज जापानमें पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा है। और अब इसके भारतपर छा जानेका खतरा पैदा हो गया है । इतिहास हमें सिखाता है कि जो लोग इस [ आधुनिक सभ्यता ] के भंवरजालमें पड़ गये हैं, उन्हें तो अपने भविष्यकी राह उसीमें बनानी पड़ेगी। परन्तु मेरा निवेदन यह अवश्य है कि जो लोग अब भी इसके प्रभावसे बाहर हैं और जिनके पास अपने मार्गदर्शनके लिए एक सुपरीक्षित सभ्यता है उनको अपनी नींवपर खड़े रहनेमें सहायता दी जानी चाहिए। इसीमें दूरदर्शिता है। मेरा दावा है कि मैंने आधुनिक सभ्यताके जीवन और प्राचीन सभ्यताके जीवन- - दोनोंको जाँचा है। और मैं इस विचारका अत्यन्त दृढ़ताके साथ विरोध किये बगैर नहीं रह सकता कि भारतवासियोंको जगानेके लिए उन्हें प्रति- स्पर्धाके कोड़े मारने और अन्य भौतिक और वासनात्मक तथा बौद्धिक उत्तेजना देनेकी आवश्यकता है। मैं यह स्वीकार नहीं कर सकता कि उनसे भारतीयोंकी नैतिक ऊँचाई एक इंच भी बढ़ सकेगी। 'मुक्ति' शब्दका प्रयोग मैंने जिस अर्थमें किया है, वह निःसन्देह सम्पूर्ण मानव-जातिका तात्कालिक लक्ष्य है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सम्पूर्ण मानव जाति इसे एक साथ ही प्राप्त कर सकती है। परन्तु यदि वह मुक्ति मानव-जातिके लिए प्राप्त करने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है, तो मैं कहता हूँ कि किसीके लिए इस आदर्शसे निम्न आदर्श स्थिर करना अनुचित होगा। निश्चय ही समस्त भारतीय धर्मग्रन्थोंने निरन्तर यह उपदेश दिया है कि तात्कालिक लक्ष्य मुक्ति है। परन्तु हम जानते हैं कि इस उपदेशके परिणाम स्वरूप 'लौकिक जगतकी गतिविधियों' का परित्याग नहीं किया गया है ।

मैं यह स्वीकार करता हूँ कि 'अनाक्रामक प्रतिरोध' एक गलत नाम है। मैंने इसका इसलिए प्रयोग किया है कि आम तौरपर इसका जो अर्थ है उसे हम जानते हैं। यह लोकप्रिय शब्द होनेसे जन-साधारणको सहज ही आकृष्ट करता है। Gandhi Heritage Portal