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१८३. स्वर्गीय सम्राट् एडवर्ड'

सम्राट् एडवर्डकी मृत्युपर सारे ब्रिटिश साम्राज्यमें शोक मनाया जा रहा है । भारतीयोंकी स्थिति क्या है ? इस समय ब्रिटिश राज्यमें प्रजा दुःखी है, क्या इस कारण वे इस शोकमें भागी नहीं बन सकते ? जो इसमें भागी नहीं बनते वे व्यक्ति अवश्य ही ब्रिटिश संविधानसे अनभिज्ञ हैं । इस संविधानके अनुसार राजा प्रशासनमें कोई भाग नहीं लेता । वह राज्यकी नीतिमें परिवर्तन नहीं कर सकता। इसलिए उसकी कसौटी करते समय केवल उसके व्यक्तिगत गुणोंपर ही विचार किया जा सकता है । किन्तु उसके व्यक्तिगत गुणोंका भी भारतीयोंपर शायद ही कोई असर पड़ता है। जो उसके जीवनसे परिचित हों और जो उसके कार्योंपर विचार करते हों उनका असर उन्हींपर हो सकता है ।

हमारे लिए तो इतना ही काफी है कि सम्राट् एडवर्डने अपनी माँ महारानी विक्टोरियाका अनुसरण करके भारतीयोंपर प्रेम प्रकट किया था । यह स्पष्ट है कि उनके हृदय में भारतीय लोगों के प्रति प्रेम था । इस कारण सम्राट्के प्रति भारतीयोंकी भावना शुद्ध ही होनी चाहिए, भले ही ब्रिटिश नीतिके सम्बन्धमें उनके विचार कुछ भी हों ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १४-५-१९१०

१८४. बादशाह चिरजीवी हों !

'बादशाह चल बसा : बादशाह चिरजीवी हो ।' ये दोनों वाक्य बादशाहकी मृत्युके समय एक साथ बोले जाते हैं। बादशाह मरता भी है और जीता भी है । बहुत-से बादशाह मर गये और बहुत-से मरेंगे । दारा, सिकन्दर और अन्य बादशाह खाली हाथ चले गये, इस तरह मनुष्यके शरीरका भरोसा नहीं रहता । किन्तु बादशाहत बनी रहती है, वह चाहे अन्यायी हो, या न्यायी और प्रजाके लिए उपयोगी । लेकिन ब्रिटेनकी बादशाहत के सम्बन्धमें इनमें से कोई भी बात नहीं कही जा सकती। बादशाह एडवर्डने यथाशक्ति सेवा की। उन्होंने राजकाजमें हस्तक्षेप करनेका खयाल भी नहीं किया, यह उनकी महानताका सूचक है । उन्हें इसी में प्रजाका हित दिखाई दिया। नये बादशाह अब युवराज (प्रिंस ऑफ वेल्स) नहीं रहे। वे बादशाह जॉर्ज पंचम हो गये हैं । उनका विचार अपने पिताके पदचिह्नोंपर चलने का है । वे इसके लिए ईश्वरसे सहायता और १. इसे शोक-सूचक काली काली मोटी लकीरोंसे घेरकर छापा गया था । Gandhi Heritage Portal