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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शक्तिकी कामना करते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी प्रजा उनकी इस कामनाकी पूर्तिके लिए प्रार्थना करे। इस प्रार्थनामें लाखों लोग सम्मिलित होंगे और हम भी प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उन्हें बुद्धि और बल दे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १४-५-१९१०

१८५. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

सोमवार [ मई १६, १९१० ]

पोलकका तार

श्री पोलकके तीन तार प्राप्त हुए हैं। उन्होंने उनमें लिखा है कि सब सत्याग्रही बम्बई पहुँच गये हैं। उनके सम्बन्धमें मद्रासमें एक बड़ी सभा हुई । उनमें से २६ लोग आते ही वापस रवाना हो गये । निर्वासित किये गये लोगों में से कुछ लोग गैर-सत्या- ग्रही भी थे। श्री पोलकने यह खबर भी दी है कि उनमें से एककी मृत्यु हो गई है। श्री पोलककी तूफानी गति-विवियोंसे यहाँके अधिकारी चौंक उठे हैं। मुझे आशा है कि जो सत्याग्रही लौटकर डर्बनमें आयेंगे, उनका स्वागत और आतिथ्य डर्बनके भारतीय करेंगे । वे कमसे कम इतना तो कर ही सकते हैं और यह उनका कर्तव्य है कि वे उनको ठहरनेकी जगह दें, उनका [ सार्वजनिक ] सम्मान करें और उन्हें ट्रान्सवाल भेज दें ।

डेलागोआ-बेमें जुर्माना

एक संवाददाताने मुझे खबर दी है कि ट्रान्सवाल आनेवाले यात्रियोंको डेलागोआ-बेमें बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है। डॉक्टर आठ शिलिंग लेता है । फिर यदि यात्रीके पास ट्रान्सवालका पास हो तो उसे आठ पौंड लेकर उतारते हैं। इसके अतिरिक्त उससे डेढ़ पौंड शुल्क लेते हैं और उसका ट्रान्सवालका पास देखा जाता है। पासको देख लेनेके बाद टिकट दिया जाता है । उसे इसके बाद पुलिसको अपनी रवानगीकी खबर देनी पड़ती है। एक आदमी उसको सरहदपर पहुँचाने आता है और वहाँ एक पौंड काटकर उसे सात पौंड लौटा देता है। इस प्रकार ट्रान्सवाल पहुँचने तक भारतीय कैदमें रहता है और तीन पौंड तक का जुर्माना देता है। इस सबको प्रवासी भारतीय ही चुपचाप सहन नहीं करते बल्कि डेलागोआ बेके भारतीय भी सहन करते हैं। वे इस सम्बन्धमें न्याय पाने में समर्थ हैं, किन्तु स्वार्थ-वश कुछ नहीं करते ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २१-५-१९१०