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१९०. अक्षम्य उपेक्षा

माननीय श्री आर० जेमिसन[१] और श्री डागर्टी[२] केवल भारतीय समाजके ही नहीं, बल्कि उन सबके धन्यवादके पात्र हैं जिन्हें डर्बनके नामकी चिन्ता है। ईस्टर्न फ्ले नामक भारतीय बस्तीकी सफाईकी डर्बन निगमने अक्षम्य उपेक्षा की है। वह बीमारीका घर बनी हुई है। इन दोनों सज्जनोंने बड़ी स्पष्ट भाषामें इसकी निन्दा की है। इस बस्ती में लगभग आठ सौ भारतीय रहते हैं जिन्हें श्री जेमिसनने "लम्बे अरसेसे पीड़ित, धैर्यवान और असहाय" कहा है। सन् १९०१ से अबतक इन भारतीय किरायेदारोंने निगमको ८,५०८ पौंड किराये और करके रूपमें दिये हैं। और इसके बदले में उन्हें सिवा दलदल, पानीके एक नल और मामूली सफाईके कुछ नहीं मिला है। श्री जेमिसन आगे कहते हैं कि यदि यहाँ यूरोपीय रहते होते तो यह बुराई कभीकी दूर कर दी गई होती। श्री डागने कुछ तफसील भी दी है। वे कहते हैं कि "सुधारके कामोंमें इस तफसीलकी उपेक्षा करने या उन्हें भुला देनेका असर उनके स्वास्थ्य, आराम और आर्थिक स्थितिपर भी पड़े बिना नहीं रहा है। शहरके दूसरे हिस्सोंमें इन तमाम बातोंकी तरफ बराबर ध्यान दिया जा रहा है, यद्यपि उन भागोंकी अपेक्षा यहाँ ज्यादा जल्दी ध्यान देनेकी जरूरत है। इस बस्तीकी सड़कपर तो तेलका एक दिया तक नहीं है।" यह इलजाम भयंकर है। इसे पढ़ते ही दिमागमें सबसे पहला विचार तो यही आता है कि इस निगमको ठीक करनेका बीड़ा उठा लिया जाये; इसमें कोई शक नहीं कि इसने ईस्टर्न फ्लेकी भयंकर उपेक्षा की है। परन्तु जरा गहराईसे विचार करें तो इस विषयमें हमें भी कुछ आत्मनिरीक्षण करना होगा। हम इस विषय में स्वयं ईस्टर्न फ्लेके निवासी भारतीयोंको भी एकदम निर्दोष नहीं मानना चाहते। वे इस दलदलमें रहनेसे साफ इनकार कर सकते थे और आज भी कर सकते हैं। परन्तु इसमें सबसे बड़ा दोष है समाजके नेताओंका। मालूम होता है कि हमारे अन्दर कौमी जिन्दगी नामकी कोई चीज ही नहीं है। वस्तीके निवासियोंकी बेबसीको हम समझ सकते है। परन्तु नेताओंकी उदासीनता समझमें आने लायक नहीं है। उन्हें निगमके पीछे पड़ जाना चाहिए था और उसे अपने इस प्रत्यक्ष कर्तव्यको पूरा करनेके लिए मजबूर कर देना चाहिए था। अगर इस बस्ती में यूरोपीय रहते होते तो उसकी तरफ निगमको क्यों तुरन्त ध्यान देना पड़ता? इसलिए नहीं कि वे यूरोपीय थे, बल्कि इसलिए कि वे नहीं, तो उनके नेता इस भयंकर अन्यायको दूर करवानेके लिए जमीन-आसमान एक कर देते। यूरोपीय लोग समाजके प्रति अपने कर्तव्यको समझते हैं। हम नहीं समझते। इसलिए यदि इसमें निगमकी उपेक्षा अक्षम्य है तो हमारे नेताओंकी उपेक्षा उससे कहीं अधिक अक्षम्य है। निगम

  1. सफाई कमेटीके अध्यक्ष।
  2. गन्दी जगहों के निरीक्षक।