पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१९४. उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंके लिए

हम आशा करते हैं कि उपनिवेशमें पैदा हर भारतीय वसूटोलैंड के शिक्षा- निरीक्षकका गत जूनमें समाप्त वर्ष से सम्बन्धित प्रतिवेदन पढ़ेगा। वसूटो जातिके लिए अंग्रेजी और सेसूटो भाषाके महत्त्वकी तुलना करते हुए शिक्षा-निरीक्षकने लिखा है :

...यदि बसूटो लोगोंके लिए शिक्षाको सचमुच उपयोगी बनाना है तो उसे उन्हींकी भाषामें अच्छी तरह दिया जाना चाहिए। ऐसी कोई बात जिससे शिक्षकोंको शिक्षाकी इस अवस्थामें जल्दबाजी करके यह दिखाने के लिए प्रोत्साहन मिले कि उनके विद्यार्थी ऊँचे दर्जोमें पढ़ रहे हैं, सच्ची शिक्षा के लिए घातक होगी । ... बसूटोलैंडमें वतनियोंका अंग्रेजी बोलना ही अस्वाभाविक है । अंग्रेजी बोल सकना एक उपलब्धि है; किन्तु यदि यह अधकचरी हो, तो यूरोपीय श्रोताओंपर बोलनेवालेका प्रभाव अच्छा नहीं पड़ता । इसलिए बसूटोलैंड में इस विषय में सब लोग प्रायः एकमत हैं कि प्रारम्भिक शिक्षा सेसूटो भाषामें ही दी जानी चाहिए। ... अतः जिस शालामें ऊँचे दर्जे में अंग्रेजी शिक्षा पानेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या अधिक हो वह अच्छी अथवा जिसमें अधिकांश विद्यार्थी केवल सेसूटो भाषा ही जानते हैं वह बुरी है, शालाओंको इस तरह आँकनेकी कोशिश मैं नापसन्द करता हूँ। जो विद्यार्थी सेसूटो भाषा अच्छी तरह जानता है। वह 'बाइबल' और 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' पढ़ सकता है। वह इस भाषा के समाचारपत्र भी पढ़ सकता है और इच्छा होनेपर सेसूटोमें लिखे उपन्यास भी । बहुत-से यूरोपीय ऐसे मिलेंगे जिन्हें अपनी भाषाका इससे अधिक पुस्तकीय ज्ञान नहीं है, परन्तु वे बहुत आगे बढ़ गये हैं ।

हम आशा करते हैं कि बसूटोलैंडके शिक्षा-निरीक्षकके इन शब्दोंपर हर भारतीय ध्यानसे विचार करेगा । शिक्षा-निरीक्षककी बात यदि बसूटो कौमके लोगोंके लिए सही है तो वह इस देशमें रहनेवाले भारतीय युवकोंके लिए कितनी अधिक सही मानी जानी चाहिए, जिन्हें इस उपनिवेशकी साधारण शालाओंमें अपनी मातृभाषाकी शिक्षा दी ही नहीं जा रही है । फिर, यद्यपि सेसूटो भाषा अच्छी तो है, परन्तु हमारा खयाल है कि उपनिवेशमें जो महान भारतीय भाषाएँ बोली जाती हैं उनके-से साहित्यिक गुण उसमें नहीं मिल सकते। यदि कोई भारतीय युवक संस्कार-सम्पन्न भारतीयकी भाँति अपनी मातृभाषा पढ़ या बोल नहीं सकता तो उसे शर्म आनी चाहिए । भारतीय बच्चों और उनके माता-पिताओंमें अपनी भाषाएँ पढ़नेके बारेमें जो लापरवाही देखी जाती है, वह अक्षम्य है । इससे तो उनके मनमें अपने राष्ट्रके प्रति रत्ती भर भी अभिमान नहीं रहेगा। सचमुच सरकारोंका तथा जो ईसाई पादरी भारतीय शालाओंका संचालन कर रहे हैं उनका भी यह कर्तव्य है कि वे बसूटोलैंडके शिक्षा-निरीक्षकके अत्यन्त बहुमूल्य सुझावोंको हृदयंगम करें। परन्तु