पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



२८०
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

वे करें या न करें, भारतीय माता-पिताओंका अपने बच्चोंके प्रति पवित्र कर्तव्य है कि कमसे कम वे तो समय रहते जो बुराई हुई है उसे सुधार लें। उपनिवेशकी शालाओं में पढ़नेवाले भारतीय बच्चोंमें से अधिकांश न तो अपनी मातृभाषा पढ़ते हैं और न अंग्रेजी । इसका नतीजा यह होता है कि भारतीय और उपनिवेशके नागरिककी हैसियतसे वे किसी कामके नहीं रह जाते और इज्जतके साथ रोजी कमानेके लायक भी नहीं रहते ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २८-५-१९१०

१९५. जोजेफ रायप्पन

श्री जोज़ेफ रायप्पन फिर जेलमें पहुँच गये हैं। उन्हें छः महीनेकी सख्त सजा मिली है और वे मातृभूमिके निमित्त कठिन श्रम करनेके लिए वापस [ जेल ] चले गये हैं । श्री रायप्पनका यह साहस सराहनीय है। उनके जेल जानेसे उन्हें और समाजको बड़ा लाभ हुआ है और आगे भी होगा ।

श्री रायप्पन जैसे शिक्षित भारतीयको ट्रान्सवालमें प्रवेश करते ही जेल जाना पड़ता है, यह कोई साधारण बात नहीं है । यह बात भारतीयोंके मनमें घरकर जायेगी। इस घटनासे सिद्ध होता है कि हम ब्रिटिश प्रजा नहीं हैं, गुलाम हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २८-५-१९१०

१९६. पत्र : एच० कैलेनबैकको

मई ३०, १९१०

प्रिय श्री कैलेनबैक,

आपका पत्र' मैंने श्री काछलिया और अन्य साथी सत्याग्रहियोंको दिखा दिया है और मैं उनकी और अपनी ओरसे आपके इस उदारतापूर्ण प्रस्तावके लिए धन्यवाद देता

१. यह इस प्रकार है :

मई ३०, १९१०

प्रिय श्री गांधी,

हमारी जो बातचीत हुई उसके अनुसार मैं लॉलीके पासके अपने फार्मका उपयोग सत्याग्रहियों और उनके गरीब परिवारोंके लिए करनेका अधिकार आपको देता हूँ । जबतक ट्रान्सवाल सरकारके साथ संघर्ष जारी रहेगा, ये परिवार और सत्याग्रही फार्ममें रहेंगे और उन्हें उसका कोई किराया या शुल्क नहीं देना पड़ेगा। वे उन सब इमारतोंको भी, जो इस समय मेरे उपयोगमें नहीं आ रही हैं, बिना कुछ दिये अपने काम में ला सकते हैं ।