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२०७. कोड़े !

हमारे ट्रान्सवालके संवाददाताने इस हफ्ते एक अत्यन्त गम्भीर समाचार दिया है। श्री शेलतने मैलेकी बाल्टियाँ न उठानेका निश्चय किया है और उन्होंने इसे धर्मका प्रश्न मान लिया है। वे अपनी पिछली जेल-यात्रामें इसी कारण एक महीनेसे ऊपर तनहाईमें रखे गये थे और इस अवधिमें उन्हें प्रायः कम खुराक भी दी जाती थी। हम आशा करते थे कि अधिकारी पिछले अनुभवसे लाभ उठाकर इस बार कोई बखेड़ा न खड़ा करेंगे और श्री शेलतको उक्त कामको करनेपर मजबूर न करेंगे। डीपक्लूफके कैदियोंसे खबर मिलनेपर जेल-निदेशकसे प्रार्थना की गई थी कि श्री शेलतसे वह काम करानेका आग्रह न किया जाये, क्योंकि उन्हें छूट देनेके सम्बन्धमें दूसरे सब सत्याग्रही सहमत हैं। लेकिन निदेशकने श्री काछलियाको जवाब दिया कि ऐसी राहत नहीं दी जा सकती। और अब नतीजा सामने है। ट्रान्सवालके लोगोंकी खातिर, हम आशा करते हैं कि अधिकारियोंने जो कदम उठानेकी धमकी दी है, वे उसे नहीं उठायेंगे। किसी व्यक्तिको उसके अन्तःकरणके विरुद्ध मजबूर करके काम करवाने के लिए कोड़े लगानेकी आज्ञा देना बर्बरताकी हद है। इसमें सन्देह नहीं कि श्री शेलत सत्याग्रहीके रूपमें कोड़ोंकी सजा भी प्रसन्नतापूर्वक सह लेंगे। लेकिन अधिकारियोंके अपने पाशविक तरीकोंपर अमल करनेके आग्रहसे तो भारतीयोंमें फैली हुई उत्तेजना केवल बढ़ ही सकती है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९१०

२०८. थम्बी नायडू फिर गिरफ्तार

श्री सोराबजीके तुरन्त बाद श्री थम्बी नायडू भी फिरसे गिरफ्तार कर लिए गये है। एशियाई कौमोंपर नियन्त्रण सम्बन्धी अपनी नीतिकी पुष्टि हो जानेसे जनरल स्मट्समें इतमीनानकी भावना आ गई है। इसलिए स्पष्ट है कि अब वे बहादुरसे बहादुर सत्याग्रहियोंपर हाथ डालकर अपनी शक्ति और दृढ़ताका परिचय देना चाहते हैं। उन्हें इस जुल्मकी खुशी मुबारक हो । इस सहसा उठाये गये कदमके लिए हम यदि उन्हें ही जिम्मेदार मानें तो हमारी समझमें हम उस महान सेनापतिके प्रति कोई अन्याय नहीं करते। और सत्याग्रहियोंके लिए तो ध्येय प्राप्त न होने तक जेलमें डाल दिया जाना एक तरहकी राहत ही है ।

श्री थम्बी नायडूकी गिरफ्तारीमें नाटकीयताका तत्व भी रहा है। सोमवारको प्रातः वे अपने पुत्रसे मिले थे जो डीपक्लूफ जेलसे तीन महीनेकी सजा काटकर

१. देखिए " पत्र: जेल-निदेशकको ", पृष्ठ २५९ । Gandhi Heritage Portal