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कोड़े !

लौटा ही था । उसी दिन तीसरे पहर फिर गिरफ्तार कर लिए गये । इस तरह पिताको अपने पुत्रके साथ कुछ दिन भी नहीं रहने दिया गया । निःसन्देह यह एक संयोगमात्र था। परन्तु इससे साफ प्रकट होता है कि ट्रान्सवालके अनेक भारतीयोंके लिए यह संघर्ष क्या अर्थ रखता है ।

श्री नायडू अत्यन्त दृढ़-निश्चयी और अव्यवसायी सत्याग्रही हैं। वे जेलके भीतर हों या बाहर, कभी आराम नहीं करते। उनका एकमात्र लक्ष्य यह है कि ट्रान्सवालकी लड़ाईमें भाग लेनेवालोंके दिमाग में सत्याग्रहीकी जो ऊँचीसे-ऊँची कल्पना है वे अपने आपको उसके लायक बनायें । श्री सोराबजीकी भाँति श्री नायडू भी दक्षिण आफ्रिकी भारतीय समाजके एक उज्ज्वल रत्न हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९१०

२०९. कोड़े !

श्री शेलतको मैलेकी बाल्टियाँ न उठानेपर कोड़े भी लगाये जा सकते हैं। यदि ऐसा ही, हो तो क्या दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय बैठे रहेंगे ? श्री शेलत कोड़े खायेंगे तो किसके लिए? और उन्हें कोड़े कौन लगायेंगे ? यह सोचकर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कोई कहेगा कि श्री शेलत मैलेकी बाल्टियां उठानेका हुक्म नहीं मानते तो इसमें हम क्या करें? ऐसा सोचना नासमझी है। आज श्री शेलत हैं तो कल दूसरे भारतीय होंगे। बात यह है कि श्री शेलतने मैलेकी बाल्टियाँ न उठाने के प्रश्नको धर्मका प्रश्न मान लिया है। ऐसे मामलेमें कोई किसीपर अत्याचार नहीं कर सकता। किन्तु ऐसे प्रश्नको लेकर जब कोई स्वयं कष्ट-सहन करनेके लिए तैयार हो जाये तब उसका समर्थन करना प्रत्येक धार्मिक व्यक्तिका कर्तव्य हो जाता है, फिर वह काम भ्रमवश ही क्यों न किया गया हो। नहीं तो स्वतन्त्रताकी रक्षा नहीं की जा सकती। जहाँ स्वतन्त्र विचार या आचार नहीं होता, वहाँ घर्म भी नहीं होता, और जहां धर्म नहीं होता वहाँ लोगोंका नाश अवश्यम्भावी है। इसलिए हमें आशा है कि यदि श्री शेलत- पर ऐसा अत्याचार किया जायेगा तो दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय जगह-जगह घोर विरोध करके सरकारपर अपना मत जाहिर करेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९१०

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