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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूकान है, वहाँ गये और उन्होंने यथासम्भव सहायता देनेका वचन दिया। अब इमारतें बनानेका काम शुरू किया गया है। उम्मीद है कि इस महीनेके अन्ततक कुछ मकान तैयार हो जायेंगे ।

यह काम बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसकी जड़ें गहरी हैं और इससे मीठे फल पाना वहाँ बसे हुए सत्याग्रहियोंके आचरणपर निर्भर है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९१०

२१३. पत्र : मगनलाल गांधीको

[जून १५, १९१० के लगभग ]

चि० मगनलाल,

मुझे जहाजवाली चिट्ठीका ध्यान है। अवकाश मिलनेपर मैं सार भेजूंगा । छगनलालका पत्र रवाना होनेसे पहलेका लिखा हुआ है। उसके सम्बन्धमें अब मैं निश्चिन्त हो गया हूँ । इंग्लैंडमें उसका स्वास्थ्य ठीक रहेगा, ऐसा मेरा अनुमान है।

चंचलको स्वदेश भेजना तय किया है। किसी संग जानेवालेकी तलाश करके फौरन भेज देना। मैं न आ सकूँगा । हरिलालने [ उसके लिए] दूसरे दर्जेका टिकट लेनेकी सलाह दी है। वैसा ही करूँगा। सुना है कि मोतीलालकी पत्नी जानेवाली है। किसी अच्छे आदमीका साथ मिले तो भी ठीक होगा। उसमें ऐसा करनेका साहस हो तो मेरी प्रतीक्षा न की जाये।

चप्पलें भेजनेके लिए इघर आनेवालेको ढूँढ़नेकी आवश्यकता नहीं है। मेरी चप्पलें बिल्कुल घिस गई हैं। मणिलालकी चप्पलें वहाँ हों तो वे भी भेज देना। मणिलाल कहता है कि वहीं, उसका रेशमी सूट है, वह भी साथ भेज दिया जाये । शायद यह सब सामान मालगाड़ीसे आ सकता है। जिस प्रकार सामान कम खर्चमें पहुँचे वैसा करना ठीक होगा। अगर सीधे फार्मके पतेपर भेजो तो भी ठीक होगा। शेष पीछे ।

मोहनदासके आशीर्वाद

हस्तलिखित मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९३०) से।

सौजन्य : श्रीमती राधाबेन चौधरी । १. देखिए दूसरा अनुच्छेद; श्री छगनलाल, जून १, १९१० को भारतसे इंग्लैंडको रवाना हुए थे । डाकको वहाँ दक्षिण आफ्रिका पहुँचनेमें लगभग १७ दिन लगते थे । २. गांधीजी के ज्येष्ठ पुत्र हरिलालकी पत्नी । ३. मोतीलाल एम० दीवान; नेटालके एक प्रमुख भारतीय ।