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२१४. सत्याग्रही

जो छब्बीस सत्याग्रही निर्वासित किये गये थे और बम्बईसे तुरन्त रवाना होकर गत रविवारको डर्बन वापस पहुँचे थे, उनमें से केवल तेरहको जहाजसे उतरने दिया गया है। शेषमें से नौका यह दावा फिलहाल अस्वीकार कर दिया गया है कि वे इस उपनिवेशके स्थायी निवासी हैं। मुख्य प्रवासी-अधिकारीको इस बातके लिए राजी करनेका प्रयत्न किया गया कि वे शेष सत्याग्रहियोंको भी जहाजसे उतरने दें और यह जमानत ले लें कि यदि ये लोग स्थायी निवासी होनेका अपना दावा सिद्ध न कर पायें तो वापस चले जायेंगे; परन्तु उसने एक न सुनी और यह वाजिब सहूलियत देनेसे भी इनकार कर दिया। इसलिए इन लोगोंको बगैर विश्राम लिए तीसरी बार यह कठिन यात्रा करनी पड़ी है। ये ब्रिटिश प्रजाजन हैं; परन्तु उन्हें पहले एक ब्रिटिश उपनिवेशने और फिर दूसरे ब्रिटिश उपनिवेशने ठुकराया है। इस तरह उनको दुःखपर-दुःख और परेशानीपर-परेशानी उठानी पड़ी है। परन्तु वापस जानेपर विवश किये गये ये वीर पुरुष दूसरी ही धातुके बने हैं। इन परीक्षाओंसे उनका उत्साह टूटनेके बदले और भी दृढ़ हुआ है और वे जिस संकल्पके बलपर अबतक टिके रहे हैं उसीके बलपर अवश्य ही अपनी मंजिल तक पहुच जायेंगे।

समाजको उनपर गर्व है। उस साम्राज्यको भी उनपर गर्व होना चाहिए जिसके नामपर नेटालने उनके साथ इतना बुरा बरताव किया है। उन्होंने अपने आचरणसे एक ऐसा ऊँचा उदाहरण पेश किया है जो दक्षिण आफ्रिकाके समस्त भारतीयोंके लिए अनुकरणीय है।

जिन लोगोंको जहाजसे उतरने दिया गया है उनका काम सरल है। उन्हें ट्रान्स- वालकी सरकारको, जो कि अब संघ-राज्यकी सरकारका अंग बन गई है, फिर चुनौती देनी है कि वह या तो उन्हें फिर गिरफ्तार करके जेल भेजे या पुनः निर्वासित कर दें। वर्ड्सवर्थने सच्चे योद्धाका जो रूप बताया है उसके अनुसार सत्याग्रहीके सामने तो केवल एक ही लक्ष्य है कि वह अपने कर्तव्यका पालन करता रहे, चाहे उसे इसकी कुछ भी कीमत चुकानी पड़े।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९१०



१. देखिए “लौटे हुए निर्वासित ", पृष्ठ २७३ । Gandhi Heritage Heritage Portal