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रंग-विद्वेष

समाचार मिला है कि अमेरिकी लोग जिस स्वतन्त्रताका गर्व करते थे अब वह भी खत्म हो रही है। वहाँ रंग-विद्वेष बढ़ रहा है। अबतक वहाँ भारतीयोंको मताधिकार प्राप्त था। अब वहाँके एक अधिकारीने यह बात खोजी है कि एशियाई लोगोंको मता- धिकार देना संविधान निर्माताओंको कदापि अभीष्ट नहीं हो सकता था । वह यह मानता है कि भारतीयोंको ही नहीं बल्कि तुर्कोंको भी मताधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। तुर्कीके प्रायः सभी लोगोंकी चमड़ी गोरी होती है। फिर भी उक्त अधिकारीका कहना है कि तुर्कीके लोग आखिरकार एशियाई हैं ।

पश्चिममें एशियाई लोगोंके विरुद्ध जो आन्दोलन चल रहा है उसका परिणाम गम्भीर निकलनेकी सम्भावना है। चीन क्या करेगा, या तुर्की क्या करेगा, इस समय हम इन प्रश्नोंपर विचार नहीं करते। किन्तु भारत क्या करेगा, यह विचार करना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है। एक रास्ता जापानने बताया है और वह है गोला-बारूदसे लड़कर अपनी शक्ति दिखाना और अपने देशकी रक्षा करना । इस मार्गपर चलकर जापान अमेरिकाकी बराबरीका हो गया है और जो-कुछ कमी होगी आगे चलकर उसकी पूर्ति कर लेगा। हमें तो लगता है कि अमेरिकाकी वर्तमान स्थिति यदि वांछनीय नहीं है तो फिर शस्त्रास्त्रोंके प्रशिक्षणसे हमें बचना चाहिए । अमेरिकाका उत्साह शस्त्रास्त्रोंपर निर्भर है।

भारतको अपनी रक्षा करने के लिए एक ही बातकी आवश्यकता है। और वह यह कि वह अपनी प्राचीन संस्कृतिको अक्षुण्ण रखे और उसमें जो दोष हों, उनको दूर कर दे। अमेरिकामें जो रंग-विद्वेष बरता जा रहा है उसका प्रयोग हमने भारतमें अपने ही लोगोंके प्रति किया है। इस रंग-द्वेषसे पश्चिमके लोग बचे रहेंगे, यह बहुत-से पाश्चात्य सुधारक मानते थे और वे ऐसा चाहते भी थे; किन्तु अब वह बात गई । अब वे कहने लगे हैं कि काले लोगोंको पृथक् किया जाना चाहिए और एशियाके लोगोंको दबाकर रखा जाना चाहिए। हमें प्रतीत होता है कि यह आन्दोलन कम होनेके बजाय बढ़ेगा; बढ़ना ही चाहिए। जहाँ लोगोंको निरन्तर अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है वहाँ वे दूसरोंको प्रवेश कदापि नहीं करने दे सकते । उनका स्वार्थ बढ़ता जाता है, इसलिए हमारे प्रति उनका द्वेष भी बढ़ेगा। स्वार्थके कारण वे आपसमें भी लड़ेंगे- • इस समय भी लड़ते हैं। यह पश्चिमकी सभ्यताका प्रभाव है। यदि हम उनके समान बनें तो कुछ समय तक तो हम उनसे हेल-मेल अवश्य रख सकेंगे; किन्तु पीछे हम भी स्वार्थान्ध हो जायेंगे, उनके साथ लड़ेंगे और आपसमें भी लड़ मरेंगे ।

कोई कहेगा कि हम आज भी आपसमें लड़ रहे हैं। यह बात ठीक है। परन्तु हमारी लड़ाई दूसरी तरहकी है। पर उस लड़ाईको भी हमें मिटाना होगा। परन्तु हम यह ध्यान रखें कि एक बुराईको दूर करनेके प्रयत्नमें दूसरी घर न कर ले ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-७-१९१०

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