पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

२४६. लॉर्ड-सभा में ट्रान्सवालके भारतीयोंकी चर्चा

"

लॉर्ड ऍम्टहिलने दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी, और हम तो यहाँतक समझते हैं कि इसके द्वारा साम्राज्यकी भी, कार्यसिद्धिके लिए अनुपम परिश्रम किया है। अब उन्होंने लॉर्ड-सभामें यह प्रश्न फिर उठाया है ।' लॉर्ड ऍम्टहिलके प्रश्नके जवाबमें अर्ल ब्यू शाम्पने जो उत्तर दिया, रायटरने तारसे उसका सारमात्र भेजा है। यदि सारमें दिया हुआ विवरण सही है, तो उससे प्रकट होता है कि साम्राज्य सरकारको गुमराह करनेकी ट्रान्सवाल सरकारकी नीति ज्योंकी-त्यों जारी है। खबरके मुताबिक जब लॉर्ड ऍम्टहिलने भारतीयोंके भारत निर्वासित किये जानेका विरोध किया, तब अल ब्यू शाम्पने कहा : “ब्रिटिश भारतीयोंको इस बातका पूरा अवसर दिया गया था कि वे दक्षिण आफ्रिकामें अपना अधिवास (डोमिसाइल) सिद्ध करें; परन्तु बहुतोंने इस सम्बन्धमें जानकारी देनेसे बिल्कुल इनकार कर दिया । सच तो यह है कि ज्यादातर लोगोंके बारेमें तो अधिकारी स्वयं जानते थे कि वे दक्षिण आफ्रिकाके निवासी हैं। और एक-आधके अलावा सभीने दृढ़तापूर्वक अपने आपको अधिवासी घोषित किया। इससे अधिक तो वे कुछ कर नहीं सकते थे । परन्तु अधिकारी अड़ गये कि उन्हें अधिवासी होनेके प्रमाणपत्र पेश करने चाहिए, जोकि बहुतोंके पास नहीं थे । सभी जानते हैं कि ऐसे प्रमाणपत्रका होना कानूनकी दृष्टिसे आवश्यक नहीं है । कुछ भारतीय ऐतिहातन ये प्रमाणपत्र ले लिया करते हैं। नवयुवक माणिकम् पिल्लेके मामलेको अधिकारी जानते थे । वे नेटालमें विद्यार्थी थे, शिक्षित होनेके नाते वे उपनिवेशमें आ सकते थे, एशियाई विभाग उनके पिताको अच्छी तरह जानता है; फिर भी बह नवयुवक भारतको निर्वासित कर दिया गया। हमें ज्ञात हुआ है कि नौजवान पिल्लेने सारी जानकारी दे दी थी । परन्तु उसका कुछ लाभ नहीं हुआ । असलियत यह है कि ट्रान्सवालकी सरकार साम्राज्य सरकारको सरासर धोखा दे रही है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण युवक पिल्ले और अन्य भारतीयोंका निर्वासन, भारतसे लौटनेपर पुनः नेटालमें उनका प्रवेश और डीपक्लूफकी जेलमें उनका बन्द कर दिया जाना है । ये प्रमाण उपर्युक्त सचाईको हमारी किसी भी दलीलकी अपेक्षा अच्छी तरह सिद्ध कर रहे हैं।

और फिर, खबर है कि अर्ल ब्यू शाम्पने यह भी कहा कि संघ राज्य भारतीयोंके 'अबाध प्रवेश' को मंजूर नहीं कर सकता । ट्रान्सवालके भारतीय अनेक बार कह चुके हैं कि वे 'अबाध प्रवेश' नहीं चाहते । सत्याग्रह ऐसे किसी हेतुको सिद्ध करनेके लिए नहीं छेड़ा गया है। इतना ही नहीं, वे जानते हैं कि यदि वे अबाध प्रवेश' के लिए लड़ेंगे तो आज लॉर्ड ऍम्टहिल और अन्य प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ उदारतापूर्वक उनकी

१. जुलाई २६, १९१० को ।

२. दिनांक जुलाई २७ को, लन्दनसे; जिसे ३०-७-१९१० के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था । Gandhi Heritage Porta