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पत्र: मगनलाल गांधीको

है। परन्तु इसका असर बहुत-से भारतीय बच्चोंपर पड़ता है और यह बड़ा महत्त्वपूर्ण है इसलिए आशा है कि साम्राज्य सरकार अब हस्तक्षेप करेगी ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्सकी टाइप की हुई दफ्तरी प्रति (सी० ओ० ५५१/७) से ।

२५७. पत्र: मगनलाल गांधीको

[ जोहानिसबर्ग ]
बुधवार [ अगस्त ३१, १९१० ]

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। छगनलालका भी मिला है।

जन्माष्टमीका व्रत रखा सो ठीक किया। मैंने भी रखनेका विचार किया था किन्तु फिर छोड़ दिया। सोचा कि एकादशीका व्रत ही ठीक पालता रहूँ तो फिलहाल यही बहुत है । कृष्णका प्रसाद प्राप्त करनेका एक ही सुगम मार्ग है और वह यह कि क्रमशः विवेकपूर्वक सत्य आदि सद्गुणोंका सेवन करना और अपनी आसक्ति अन्य सब विषयोंसे हटाकर एकके ही प्रति रखना । “कागा सब तन खाइयो और जलायो मास, दो नैना मत खाइयो, पिया मिलनकी आस -- ये शब्द प्रेमी और प्रेमिकाके विषयमें कहे गये हैं; परन्तु वास्तवमें वे प्रभु-रूपी प्रीतमसे मिलनेके लिए आत्मा-रूपी प्रेमिकाकी उत्कट याचना बताते हैं । शरीरादि चला जाये उसकी चिन्ता नहीं। वासना- रूपी काग ज्ञान-रूपी आँखोंको न खा जाये तो प्रीतम मिलेगा ही।

छगनलालके पत्र अभीतक उसकी भीरुता जाहिर करते हैं। गोकलदासके विषयम उसने जो लिखा है उससे ऐसा जान पड़ता है कि कहीं तुम और हम सब अपने बड़ोंकी उपेक्षा तो नहीं कर रहे हैं। गोकलदास देश नहीं जाना चाहता, इससे उसका अज्ञान ही प्रकट होता है। उसके लिए यहाँ कोई कर्तव्य तो है नहीं। वह यहाँ परमानन्दभाईकी स्पष्ट आज्ञासे आया हो, सो भी नहीं है। फिर, परमानन्दभाई उसे केवल देखना चाहते हैं। फिर भी वह जानबूझकर रुका हुआ है। तुम सब जिन्हें अपने माता-पिताकी सेवा इष्ट है यहाँ बैठकर भी सेवा कर रहे हो। तुम्हारे धन-संग्रहका यही हेतु है। तुम उनके पास रहो तो उन्हें उतना सन्तोष अवश्य होगा, किन्तु उसके सिवा उन्हें तुम्हारी और कोई जरूरत नहीं है। मेरा इस बातमें पूर्ण विश्वास है कि जो बालक अपने माता-पिताकी अवहेलना करते हैं वे दुनियामें और कोई भी कर्तव्य करके २. ऐसा प्रतीत होता है कि यह पत्र तब लिखा गया था जब ध्यानलाल १९१० में दक्षिण आफ्रिकामें नहीं थे । दूसरे अनुच्छेद में उल्लिखित जन्माष्टमी उस साल रविवार, २८ अगस्तको पड़ी थी । २. प्रचलित पाठ है : " चुन-चुन खइयो माँस " । ३. गांधीजीके चचेरे भाई; परमानन्ददासके पुत्र ।