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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृष्टिसे निकम्मा बना देती है । खेतीके काममें उनसे कोई आशा नहीं की जा सकती ।

श्री हैगरको भारतीय इतनी अच्छी तरह जानते हैं कि वे उनके इन शब्दोंको कोई बड़ा महत्त्व नहीं देंगे। उन्होंने पहले भी इसी तरहके इलज़ाम इस कौमपर लगाये थे, जिन्हें वे सिद्ध नहीं कर सके थे। लोग इस बातको अभी भूले नहीं हैं। परन्तु कभी-कभी हम अपने कट्टर विरोधियोंसे भी बहुत-कुछ शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। हमने ऊपर जो वाक्य उद्धृत किये हैं, उनमें थोड़ी सचाई भी है। मजेकी बात है कि हालमें ही हमें एक संवाददाताका पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि हम इस पत्रमें नियमित रूपसे भारतीय खिलाड़ियोंके समाचार दिया करें। हम खेलोंके विरुद्ध नहीं हैं। और यदि हमारा पत्र लगभग पूरी तरह दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके संघर्षके लिए समर्पित न होता, और यदि खिलाड़ी भारतीयोंकी ओरसे हमें पर्याप्त समर्थन मिला होता तो नियमित रूपसे खेलोंके समाचारोंके लिए कुछ स्थान रखनेको हम तैयार न होते, सो बात नहीं है। परन्तु हम अपने इन नौजवान मित्रोंसे पूछना चाहते हैं कि आज वे खेलोंमें जितना समय और ध्यान देते हैं क्या उतना ध्यान उन्हें इनपर देना चाहिए ? सच तो यह है कि हमारे आसपास जो कुछ हो रहा है उसे जो भारतीय जानते हैं उनका मन खेलोंकी तरफ जा ही नहीं सकता। आजके शोभाचारी (फैश- नेबल) खेलोंके बगैर भी हमारे पूर्वजोंका काम बड़ी अच्छी तरह चलता था । शरीरको सुदृढ़ बनाने के लिए जो खेल खेले जाते हैं उनका तो कुछ उपयोग है। परन्तु हम सुझाना चाहते हैं कि खेतीबारी भारतीयोंका ही नहीं सारी मानव-जातिका सनातन पेशा है; वह फुटबाल, क्रिकेट और दूसरे तमाम खेलोंसे भी अच्छा खेल है। इसके अलावा वह उपयोगी, गौरवशाली और धन देनेवाला है। फुटबाल और क्रिकेट उन लोगोंके लिए अच्छे खेल हो सकते हैं जिन्हें प्रतिदिन लिखने-पढ़ने आदिका नीरस परिश्रम करना होता है। परन्तु किसी भारतीयको इसकी जरूरत नहीं है। इसलिए अपने इन नौजवान खिलाड़ी मित्रोंको हमारी सलाह है कि वे श्री हैगरके शब्दोंका बुरा न मानें और कारकुनी, अखबार बेचने आदिके तिरस्कार-युक्त कामको छोड़कर स्वतन्त्र और पुरुषोचित कृषि-कार्य अपनायें । उनके सामने श्री जोजेफ रायप्पनका ज्वलन्त उदाहरण है, जिन्होंने बैरिस्टर होनेपर भी फेरी लगानेका काम किया और बादमें सत्याग्रह- आश्रममें शरीर-श्रम करते रहे।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-९-१९१०

१. टॉल्स्टॉय फार्म ।