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२६३. विलायतकी सभा

विलायतमें ट्रान्सवालकी लड़ाईके सम्बन्धमें जो सभा हुई और लॉर्ड-सभामें लॉर्ड ऍम्टहिलने जो चर्चा आरम्भ की थी उसका विवरण अब मिल गया है । ये दोनों बातें हमारे लिए बहुत उत्साहवर्धक हैं। उपर्युक्त सभाके सभापति सर मंचरजी भावनगरी थे । ये महोदय प्रारम्भसे ही हमारी बड़ी सहायता करते आये हैं, इसलिए उनका सभापति होना उपयुक्त ही था। न्यायमूर्ति ( जस्टिस ) अमीर अली और सर चार्ल्स ब्रूसने इस सभाको जो सन्देश भेजे थे वे जानने योग्य हैं । सभामें प्रत्येक पक्ष तथा प्रत्येक समाजके नेता उपस्थित थे । इन नेताओंके भाषण भी ओजस्वी और प्रभावोत्पादक थे । इस सबसे हम समझ सकते हैं कि विलायतमें हमारे संघर्षको अच्छा समर्थन मिल रहा है। परन्तु हमारी अपनी शक्तिके आगे इस समर्थनका कोई महत्त्व नहीं है । यदि हममें शक्ति न हो तो विलायतमें मिलनेवाला समर्थन हमारी निर्बलताका ही द्योतक होगा। सच तो यह है कि अगर लॉर्ड ऍम्टहिल हमारे लिए लड़ रहे हैं, सर मंचरजी जुटे हुए हैं और श्री रिच अथक परिश्रम कर रहे हैं तो यही समझकर कि हम लोग कष्ट सहन करते हैं, हमने देशकी खातिर गरीबी अपनाई है, और अपनी इज्जतके लिए हम मौतकी भी परवाह नहीं करते। इस सभाकी सफलताका श्रेय श्री रिच और उनके स्वयंसेवक दलको है और इसलिए इसके लिए वे ही बधाईके पात्र हैं। -

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-९-१९१०

२६४. पत्र : छगनलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म
भाद्रपद सुदी १ [ सितम्बर ४, १९१० ]

चि० छगनलाल,

यह पत्र मैं दुःखी मनसे लिख रहा हूँ। तुम्हारा हिन्दुस्तान जाना ठीक नहीं हुआ, ऐसा लगता रहता है।

डॉक्टर [ मेहता ] के नाम लिखे गये तुम्हारे पत्रको पढ़कर मुझे बहुत दुःख हुआ । तुम्हें क्षय रोग हो जाये, यह मैं कैसे सहन कर सकता हूँ ? यह सोचकर कि तुम अभी वहीं [ इंग्लैंडमें ] हो, यह पत्र लिखा है। अगर तुम स्वदेश चले गये होगे, तो मॉड तुम्हें यह पत्र वहाँ भेज देगी।

१. यह पत्र छगनलाल गांधीकी दक्षिण आफ्रिकासे अनुपस्थितिके दिनोंमें, सन् १९१० में लिखा गया था।

२. मॉड पोलक, श्री एच० एस० एल० पोलककी बहन; जो एल० डब्ल्यू रिचकी अनुपस्थितिमें लन्दन-स्थित दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिकी सचिवके रूप में काम कर रही थीं । Gandhi Heritage Heritage Portal