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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निर्वासित कर दिया गया, तो क्या उनके माता-पिता इतने कठोर होंगे कि अपने बच्चोंको छोड़कर ट्रान्सवालमें रह जायें ? हम तो ऐसा सोच ही नहीं सकते। माता और पिता अपने गोदीके बच्चोंको लेकर ट्रान्सवाल आये थे । अब मान लीजिए कि ये बच्चे १६ वर्षके होने तक कभी भारत नहीं गये और उनके माता और पिता दोनों यहीं ट्रान्सवालमें हैं, तो १९०८ का कानून बन जानेके बाद अब ये १६ वर्षके बच्चे कहाँ निर्वासित किये जायेंगे ? और मान लीजिए कि ट्रान्सवाल-निवासी भारतीय माता-पिताके कोई बच्चा जहाजपर पैदा होता है। यदि वह बच्चा लड़का है तो ट्रान्सवालकी बालिगीकी आयु, अर्थात् सोलह वर्ष, का होनेपर उसे कहीं भेजा जायेगा ? सोचा तो यही जा सकता है कि ट्रान्सवाल सरकार अधिनियमकी अपनी व्याख्याके सम्भाव्य परिणामोंको देखकर सचमुच दंग रह जायेगी ।

परन्तु ऊपर शुद्ध मानवतावादी दृष्टिसे जो विचार किया गया है; उसे छोड़ दें । तत्कालीन एशियाई कानूनको पेश करते समय जनरल स्मट्स द्वारा दिया गया भाषण, एशियाई परिषदके बारेमें जनरल बोथाकी टिप्पणी और एशियाई कानूनके सम्बन्ध में (तत्कालीन महान्यायवादी) श्री विलियर्स द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन हम अन्यत्र दे रहे हैं। इन सभीसे ज्ञात होगा कि एक शब्द भी उनमें ऐसा नहीं है जिससे यह प्रकट हो कि जो नाबालिग बच्चे ट्रान्सवालमें पैदा नहीं हुए वे यदि कानून जारी होनेके बाद वहाँ आयें तो उनको निर्वासित कर दिया जायेगा । बल्कि उनमें कहा तो यह गया है कि इस सम्बन्धमें एशियाइयोंकी मांग पूरे तौरपर मान ली गई है। एशियाइयोंको कभी यह सन्देह भी नहीं हुआ कि उनके नाबालिग बच्चे बालिग होनेपर निषिद्ध-प्रवासी करार दिये जायेंगे। इस कानूनका चाहे जो अर्थ लगाया जाये, परन्तु यहाँ तीन-तीन मन्त्रियों द्वारा दिये गये वचनकी प्रतिष्ठाका प्रश्न भी तो है।

यदि यह मान लिया जाये कि सर्वोच्च न्यायालयका निर्णय हमारे विरुद्ध होगा, तब भी प्रश्न इतना अधिक महत्त्वपूर्ण है कि इसे सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयसे ही तो निर्णीत नहीं माना जा सकता। हम उसके निर्णयकी पहलेसे कल्पना नहीं करना चाहते। परन्तु हम यह कहे बिना भी नहीं रह सकते कि ट्रान्सवालके भारतीयोंके लिए यह जीवन-मरणका प्रश्न है। हम तो चाहते हैं कि इसे ट्रान्सवालकी ही नहीं, बल्कि समस्त दक्षिण आफ्रिकाकी जनताकी प्रतिष्ठाका प्रश्न माना जाये । क्या दक्षिण आफ्रिकाकी जनता गवारा करेगी कि बच्चोंके विरुद्ध इस प्रकार लड़ाई चलती रहे ?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९१०


१, २ और ३. देखिए परिशिष्ट ७ । Gandhi Heritage Portal